मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य- गेस सलेंडर लानव-पति नंबर वन कहावव

व्यंग्यकार- श्री विट्ठलराम साहू 'निश्छल'
दूरदरसन अऊ अकासवानी म रोज दिन संझा-बिहना बिगियापन म किथे-‘नसबंदी करवा के नम्बर वन पति बनव किके। कतको झन मन आज ले गुनते रहिगे। में मने-मन खुस होथंव। काबर कि में तो नसबंदी करवा के कब ले ‘नम्बर वन पति‘ बन गेए हॉव। जब नम्बर वन पति वाला बिगियापन चलत रिथे त मोर घरवाली ह मोला देख-देख के मुचमुचावत रिथे। ओकर मुचमुचई मोला बने लागथे। सान ले मोर छाती फुग्गा कस फुल जथे। 
में अपन मेछा ल अंइठे लगथव।‘ में एक दिन काम ले आ के गोड़ हात धो के सोफा म बइठके पोछत-पोछत गोसईन ल केहेंव -ले चाहा ल लान बड़ थकासी लागत हे। रेडिया ल चालू करेंव त फेर उही पति नम्बर वन बनव किके बिगियापन देवत राहाय। मैं घरवाली ल सुना के केहेंव-‘अरें मोला तो नम्बर वन पति बने दसन बछर होगे, तें तो नंबर वन पति बने बर अभीन काहात हस।‘ गोसईन ल फुरसुतहा बइठे देख के फेर केहेव-अरे तो नम्बर वन पति ल अभी तक ले चाहा-चुही नई पोरसत हस, कइसे तोर मनढेरहा कस लागत हे? आन दिन तो बने मुचमुचावत राहास आज का होगे हे तोला? चूलहा-चौंकी घलौ जुड़हा दिखत हे। ओ ह आंखी ल छटकावत कहिथे-‘बड़ा लोखन के नम्बर वन पति बनथस भला गेस ल भरवा के लान देबे त जानहू तोला नम्बर वन पति अस घुन का पति अस ते।‘  मैं अचरित करत केहेंव-‘अरें कइसे गेस उरकगे का ओ? किथे-गेस रहितीस त चाहा-पानी, भात, साग ल रांध के नी मढ़ा देतेंव।‘ मैं केहेंव - दुनो टंकी उरकगे? ओ किथे-एक ठन ह तो महिना भर होगे उरके। दुसर ह आजे उरकीस हे । तोला तो कब के काहात हौंव-गेस ल भरवा के लान दे न लान दे, फेर तोला फुरसुत काहां हे? ले अब कइसे रांधहूं तेन ल बता ? गेस उरके सुनेंव त मोर नम्बर वन पति होय के सान ह जुड़ागे। जब पहिली टंकी उरकीस त तुरते गेस दुकान म जा के नंबर लगवाय रेहेंव। गेस वाला केहे रीहीस-एक हफ्ता म गेस आही, आ के लेग जबे किके। ओ हफ्ता बुलकगे नईजा पायेंव। दुसर हफ्ता गेंव, त किथे-वा, तोला तो एक हफ्ता के बाद आबे केहे रेहेव, तें तो आबे नी करेय, दु टरक आय रीहीस उरकगे। अब तो पनदरा दिन नई आवय। एकट्ठा ओ महिना म आबे त पाबे। मे केहेंव-अरे यार बड़ गड़बड़ होगे, कहूं उहू टंकी उरक जही त कइसे कर हूं?  गेस वाला किथे-ले न आबे देखबो। में ओखर आसरा देवई ल सुन के घर आगेंव । ये बात ल गेए महिना बीतगे। ये दे उदुपले आजे गोसईन बतईस गेस उरक गे कहिके। मोर तो हऊस उड़ियागे दिन घलौ बुड़गे, कांहा जांवव काखर सो मांगव बड़ अलकरहा होगे। गोसईन ल कहिंथव-जा ना अरोस-परोस ले अमीन भर बर मांग के ले लान भरवा के लानबो तहां लहुटा देबो, तहू तो ओ मन ल बेरा-कुबेरा देवत रहिथस। बिपत म काम आना चाही परोसी मन के। गोसईन ह आंखी ल ततेरत कहिथे-अभी रात कीन काखर घर जाहू काखर करा मांग हूं, अऊ कोन दिही? गेस बर कतका मारा-मारी होवत हे तेन ल तैंका जानबे? लोगन मन रात-दिन नम्बर लगाय बर खवई-पिअई ल तियाग के गेस दुकान म अड़े हे बिचारा मन। मैं केहेंव-अरे, तैं जौन मन ल अड़धन म ऊंखर काम चलाये हस तौनो मन नई देही ओ? नई देवयं, कोनो नई देवयं, गोसईन ह खिसियाहा बानी म कहिस। मैं सोचेंव डौकी जात ल नई दे ही, राहा मैं जा के मांग देखथों कहूं मिल जाय त, मिल जाय कहिके दु-चार घर में गेंव। सबो घर अपन-अपन गेस के रोना ल रो दिन। कोनो कीहीन-अरे, हमरो घर उरक गे रीहीस गेस ह गुड्डू के बाबू ह बिलेक म लाने हौ काहत रीहीन। एक झन परोसी कहिथे-यार, तहू अलकरहा हस जी घर पहुंच सेवा वाला मन रोज गली-गली किंदर-किंदर के देथे। दस-बीस उपराहा दे देवे तहां दे देथे। मैं तो दुदी ठन टंकी लेय हावव। मैं परोसी के गोठ ल सुन के अचरित ख गेंव। मैं का जानव गेस वाला मन के गोरख धंधा ल, भल ल भल जानेंव। तभे हाटल वाला अऊ मोटर वाला मन करा आठ ठन-दस ठन टाकी रेहे रथे।
परोसी मन मोला अइसे नजर ले देखिन जने-मने मैं कोनो अपराध कर के आए हावव तइसे। ऊंखर देखई म रहसिय रीहीस। ओ मन सोचत रहीन हो ही ये बड़ कंजूस आय उपराहा खरचा करे के डर म एखर-घर-ओखर घर मांगत हे, भुगतन दे। अरे। परोसी मन मोला नई जानय। महू दुनिया संग रेगे ल जानथव ‘मरता क्या न करता‘ कहिथे, मैं दस बीस का, सौ अऊ पचास देय बर तियार हावव फेर अइसन अपराध कब तक होवत रही? अऊ कब तक ले साहन करबो? मैं तभो ले जौन मन सौ पचास उपराहा ले, के देथे तिखरो-मन मेर जा के अपन दुख ल गोहरायेवं। कोनो नई मोर मदत करीन। 
मैं रोज बिहनिया गेस के टंकी ल सायकल म चपक के गेस दुकान जाथंव। नई हे कहिथे त फेर आ जाथव। देखइया मन घलौ काहात होही-कतक गेस डोहारथे रोज दू बेर तीन-बेर लानथे। गेस बिलेक करे के धंधा करत होही अऊ देखबे ते मोला इंहा भात के बदला रोज गारी खाय बर मिलथे।  मोर गोसईन बिचारी मोला आवत देखथे त धरा पसरा कपाट ल हरथे अऊ खुस होवत पूछथे-आज मिलीस गेस? मैं मुंह ल ओथार के कहिथव-नई मिलीस रे भगवान, का बतावव बड़ आफत हे सारे ह। घरवाली सुन के उदास हो जथे। फेर गुंगवावत चूलहा मेर आ के लाम सांस लेवत पोंगरी म फूंके लगथे। बरसात म चूलहा के लकड़ी ह बरे घलौ नहीं । पानी पिए लकड़ी गुंगवाथे। आंखी-नाक दूनो ओरवाती सहीक चुचवाथे। का करय लुगरा के अंचरा म रगर के पोंछत गेसवाला मन ल फुहरे-फुहरे बखनथे। रोगहा-अजरहा मन गेस ल बिलेक कर देथे , ये लोग ह चुलहा म आंखी फोरथे। इंखरेमन के राज आ गेए हे। उनला कोना कहइया नई हे। थाना-कछेरी, साहेब-मंतरी सब तो भस्टाचार म बुड़े हे। जनता ह काखर मेरन अपन दुख ल रोवय। गरीब के देखइया कोन हे? ओट ल मांगत खानी हात-पांव जोरथें-देखव दाई -ददा हो मोला भुला हू झन, मैं तुंहर सेवा ल पांच बछर ले करहूं, अइसे करहू ओइसे करहू कहि के मीठ-मीठ गोठियाही, अऊ जीत के राज-पाठ म बइठीन तहां पुछय नहीं, ऊंखर पुदगा जाम जथे। हीरक के नई देख्यं। रो-धोके भत-साग ल रांध के मोला पोरसीस। मैं जें-खा के जलदी सुतेव, मुंदराहा ले फेर गेस दुकान म लयेन लगाना हे कहिके। संसो के मारे नींद घलौ नई परीस। रात कीन दु बेर ले दुआर उठेंव फेर बेरा ह पंग-पंगायेच नई राहाय। तभो ले मुंह-कान ल धो के गेस के टंकी ल सायकल म चपक के चल देंव । ओतका बेरा रात ह तीन बजे राहाय। ऊंहा जा के देखथव ते गेस दुकान करा मेला सहीक भीड़ ह रवैमो खैमों करत राहाय। फरलांग भर ले चांटी कस रेम लगे राहाय। अवइया मन आते राहाय। लैन ह बाढ़ते राहाय। दिन बुड़त मोर पारी अईस। त गेस वाला ह कहिथे-गेस तो उरक गे, जा, आन दिन आबे। मैं केहेव-कस जी मोरे आगू म अभी कतको झन ल दु-दु चर-चर ठन टंकी देये हस अऊ मैं एक ठन वाला बर तै उरक गे कहिथस, रात के तीन बजे के ठाढ़े हौं, ये दे दिन घलौ बुड़ती आगे। गेस वाला मोर डाहार लाल-लाल आंखी देखावत कहिथे-ओ कब का नम्बर लगवाया थ, तुमको पता है? दो माह पहिले का है, तुम तो आज ही लगाये हो। जाओ कल आना, बचेगा तो मिलेगा। का करव जुच्छा हात फेर घर लहुटेंव। ‘काहां गेय रेहे कहूं नहीं, का लाने कुछुं नहीं।
घर आवत-आवत गोड़-हात सीनसीनागे, सोचे लगेंव-मैं अब‘पति नम्बर वन‘ होय के पदवी के लाज ल नई राख सकेंव। गोसईन के नजर म मैं नलायेक पति बन गेंव। धीक्कार हे अइसन पति ल जौंन अतका दुख भोगे के बाद घलौ एक ठन गेस के टांकी ल नई लानन सकेंव। टीबी, रेडिया वाला मन ल ‘ पति नम्बर वन‘ होय के परिभाषा ल ‘नसबंदी‘ संग जोरे के बदला गेस संग जोर लेना चाही। 
 ‘गेस सलेंडर लाओ-पति नम्बर वन कहलाओ।‘
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मौहारी भाठा महासमुंद छत्तीसगढ़

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