शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य : संपत अउ बिपत म भगवान

व्यंग्यकार - श्री विट्ठलराम साहू 'निश्छल'
एक समे के बात आय, राजा फिलिप ह एक दिन अपन महल के छत ऊपर ठाढ़े रहाय। ओतके बेरा ओ देखथे कि एक झन कैदी ल फांसी देय के तिआरी चलत रहाय। ओ भगवान ल गोहराइस- ‘हे भगवान, मोर ऊपर तोर महान किरपा हे, मैं आज राजगद्दी के परम सुख ल भोगत हॉव, अउ एला फांसी के तकता म लटके बर परत हे। पाछू म ठाढ़े राजा के गुरू ओखर गोहरई ल सुनके कहिथे-राजा तैं बिसरत हस, भगवान के जौंन किरपा ले तोला राजभोग मिले हे, उही किरपा ले कैदी ल फांसी के सजा घलौ मिले हे, कइसे महान सत्य हे। आदमी के सोंच कइसे छोटे हे। लौकिक सुख म भगवान के किरपा समझ। अउ दुख म अकिरपा देखते। ओकर किरपा तो चौबीसों घंटा सब जीव ऊपर होवत रहिथे। हमर नान्हे सोंच के सेती अनुभूति अउ साक छात्कार नई होवय।‘ 
हमला भगवान के किरपा के रद्दा नई देखना हे बल्कि, ओखर समीक्छा करना हे। अगोरा तो ओखर करे जाथे जौंन ह हमला प्राप्त नई होय हे। पाए जीनिस के समीक्छा होथे। परमात्मा खुदे मंगल होथे। 
‘मंगलं भगवान विर्ष्णुमंगलम् गरूड़ध्वजम्।
मंगलम् पुण्डरीकाक्षो मंगला यतनो हरिः।।‘ (गरूड़पुराण खं. 35/46)
मंगल सरूप भगवान कभू अमंगल नई करय। बिसनु सहस्त्र नाम स्त्रोत में भगवान के स्वस्तिद, स्वस्ति द्व स्वस्ति, स्वस्तिमुक, स्वस्तिदाक्षिण आदि मंगल करइया नाव हे। ओखरे सेती परमात्मा के सबो बिधान ह कल्यान करइया होथे। ये मंगल करइया बिसनु सबो डहार बियाप्त हे। जिनगी अउ मिरतुक म, मीत अउ बैरी म, रोग अउ निरोग म, धन पाय अउ गंवाय म, मान अउ अपजस म, हमला सबे मंगलकारी परमात्मच के किरपा के अनुभूति करना चाही। तेखरे सेती गीताजंलि के कवि सिरि रविन्द्रनाथ ठाकुर ह भाव म बसीभूत होके गाय रिहिस- ‘हे परमपिता परमेश्वर मोला आ सक्ति दे जेखर ले मैं जिनगी के सबो सरवांग मन ल परेम ले अपना संकव, चाहे कोनो खुसी के छन होवय, चाहे दुःख के, लाभ होवय चाहे हानि के, उदय के होवय चाहे अस्त के।‘
नरसी मेहता के बेटा सामलसाह के इंदकाल होगे अउ गावत हे- ‘भलुं थयु मांगी जंजाल, सुखे भजेंसुं श्री गोपाल।‘
अच्छा होगे जंजाल छूटगे, अब सुख से मैं भगवान के भजन करहूं। 
ओ कहिथे- जे गम्यूं जगत गुरूदेव जगदीश तू तणे खरोरा कोक करयो।‘
‘आपणें चिंताओं अर्थ कई नवसरे, डगरे एक उद्वेग धरवो।‘
ये संसार म जेखर ले परेम रिहीस तौन ल गुरू देव जगदीश ह ले गे अब मोर संसों करे के कोनो बाते नइहे। एक ठन भाव ले अब मोला छुट्टी मिलगे। 
संत तुकाराम के पतनि बड़ गुस्सेल बानी अउ बड़ करकस राहाय, तेखर बर ओ ह भगवान ल धनियावाद देवत कहिथे - ‘मोर घरवाली के सुभाव ह मोर लइक नइहे तेखर सेती मैं ह ओखर मोह माया म नई फंदाएव, तेखर सेती भगवान ह मोला साहज म मिलगे। जादा कोसिस करे बर नई परीस।‘
एक नाथजी के घरवाली घलौ एक नाथ संग छत्तीस के आंकड़ा राहाय, ओह भगवान के अभार के रूप म मानय कि ओखर घरवाली ह एकनाथ के साधना भक्ति म सहायता करय। अइसने नरसी मेहता ह बेटा के मिरतु म, संत तुकाराम ह बिपरित बिचार वाली गोसइन पायके सेती, अउ एकनाथ जी बिपरित समझ वाली घरवाली पा के घलौ परमात्मा ल धनियावाद दिस।
एक झन गौतमी के एकलौता बेटा मरगे, ओ दुःखी हो के भगवान बुद्ध मेरन अइस अउस दिकछा ले लिस। ओखर एके परवचन ले पांच सौ माई लोगन मन दिकछा ले के बौद्ध भिक्षुणी बनगे। पटाचारा के आगू के जिनगी के कहिनी अइसे रिहिस-ओ अपन दाई-ददा के बिचार के बिरूध अपन मन के बिहाव कर डारीस अउ परदेस म चल दिस। दु झन बेटा होय के बाद एक दिन अपने दाई-ददा संग भेंट करे बर अइस। संग म ओखर घरवाला अउ दुनो बेटा मन राहांय। रस्ता म घनघोर जंगल परीस। ओखर घरवाला ल सांप चाब देथे, ओ मर जथे। एक झन बेटा ल बघवा उठा के लेग जथे। अउ एक झन बेटा ह एक ठन झाड़-झंखाड़ के भुतका म खुसरीस ते उहां ले निकरबे नई करीस, कोजनि कहां अछिप होगे। ते पताच नई चलिस। पटाचारा का करय हतास होके दुःखी होगे। अपन दाई-ददा मेरन जाथे। ऊंहा गिस त लोगन बतइस कि जौन घर म राहात रीहीन तौन ह भसक के गिर गे उही म चपका के दाई-ददा दुनो मरगें। ओमन ल मरे तो बरसों बित गे राहाय। का करय ओ ह भगवान बुद्ध के सरन म अइस। तथागत ह ओला असार संसार के गियान कराथे। सासवत शांति अउ सुख-दुःख ले अलग जिनगी के नासवान होय के रहसिय ल समझा के ओखर मन म बइठे मोह-माया के जंजाल ल छोड़इस। तीन-तीन ठन दुःख के ज्वाला तपाय पटाचारा ल भगवान तथागत के बानी ले परम सांति अउ समाधान मिलिस।
संत रविदास ननपन ले कतको परेमी मन के दुख, भीसन गरीबी, बेमारी, गुलामी ल निडर होके हांसत-हांसत झेलिस। भगवान के करूना-किरपा अउ नियाव प्रियता के बिसय म संखा करना भक्त रविदास के बिचार म मुरूखपना अउ सरद्धा के सीमा रीहिस।
जौंन बिपत्ति परमात्म के अखंड सुरता कराथे। मोह ह सराप नहीं बरदान ये। अकिरपा नहीं अनुग्रह ये। नारद पंचरात्र में खुद परमात्मा के बचन हे- ‘देशत्यागामहान व्यार्धिविरोधी सक्षणम।
देसतियाग, महारेाग, ददा-भाई मन ले बिरोध, धन हानि अउ अपमान ए मोर किरपा के लक्छन ए।‘
गीता म घलो भगवान कहे हे ‘जेखर बर मैं अनुग्रह करावौं ओखर धन ल धीरे-धीरे हरन कर लेथंव। जब ओ ह कंगाल हो जथे तब ओखरे सगा-संबंधी मन ओखर संग ल छोड़ देथें। फेर जब ओखर धन कमाय के सबो कोसिस ह कांही मतलब के नई होवय। अउ ओखर से मन ह बैराग हो जथे। तब ओ ह मोर परेमी के भक्त के आसरा लेके ओखर संग सांठ-गांठ करे बर धरथे। उही बेखत मैं ओखर बर मया करथंव।‘
भगवान ह इंद्र के मानहानि करत बेखत कहिस-‘इंद्र तैं अपन सान अउ वैभव के निसा म बउरावत रेहे तेखर सेती तोर ऊपर अनुग्रह करके तोर जग ल भंग करेंव, एखर सेती कि तैं मोला सदा सुरता करस। जौन धन-दौलत अउ बड़ई के सेती घमंड म अंधरा हो जथे। तेन ह मोर सहिक सजा देवइया ल नई देखय। मैं जेखर ऊपर अनुग्रह करना चाहथंव, तेखर मान, बड़ई ल भ्रस्ट कर देथंव।‘
हमन परमात्मा के कैलानकारी बरजना ल समझन नई सकन, आदमी ह परमात्मा के मन ले अपन मन ल मिला देवय त सदा दिन बर सुखी रही सकत हें। महात्मा इशू ह कहिथे -‘परमेश्वर के इच्छा ले बढ़के अउ कोनों नइ हे। ओखर ले कमसल घलौ कखरो ले कम नई होवय। अउ दुसर कांहीच नई है। भगवान सबके मन के बात ल जानथे-समझथे, तभो ले अगियानता के सेती हमन अपन जरूरत ल ओला बतावन, त जौन जुआप हमर भलई करइया आय तेन ला पाय बर ओ अगमजानी ऊपर भरोसा करना चाही।‘
0 विट्ठलराम साहू 'निश्छल' मौहारी भाठा महासमुंद छत्तीसगढ़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य : पत्नी पीड़ित संघ

व्यंग्यकार श्री विट्ठलराम साहू ‘निश्छल’ रायपुर छत्तीसगढ़  पत्नी पीड़ित संघ के अध्यक्ष ह जब सुनिस कि सरकार हा 2011 बरस ल नारी ससक्तिकरण बर...