शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य - अब महूं हयसियत वाला होगेव

व्यंग्यकार - श्री विट्ठलराम साहू 'निश्छल'
जब कोनों कखरो घर बइठे-उठे बर जाथें त उंहा देसी-बिदेसी कांही जीनीस ल देखथें त मन म एक ठन बात उठथे कि अइसने जीनीस मोर घर काबर नइ हे ? का मोर हयसियत नइ हे? आज के जमाना म जेकर करा जतका बिलासता के समान रही, ओ ह ओतके अपन-आप ल सभ्य अउ हयसियत वाला समझथे। फेर मे ह ये सब बात के परवाह नइ करंव। मैं अपन आदर्श म अड़े हावव। मैं अपन जिनगी म अर्थशास्त्र के उपयोगिता हास नियम के कड़ाई ले पालन करे म बिसवास करथेव।
जब ले मोर गोसइन ह परोसी घर मोबाइल देख के आय हे तब ले ओ मोबाइल बर रोजना धर देय हे। कहिथे हगरा-पदरा मन मोबाइल धरे किंदरत रहिये। फेर कोन जनी हमर घर काबर मोबाइल नइ लानत हे ते ? कोन जुग म हावे ते? इहां लोगन कहां ले कहां निकरत हें। ये ह सव साल पाछू म जीयत हे। 
मेह गोसाइन के ताना ल सुन-सुन के पानी-पानी हो जथवं। जब-जब परोसी मन घर ले कांही नवा जीनीस देख के आथे, तब-तब मोला ओ जीनीस ल लान कहिके पदनीपाद पदोथे। ओ ह रंगीन टी.वी. कूलर वाशिंग मशीन, मिकसी, सीडी प्लेयर को जनी का-का जीनीस बर भूख हड़ताल कर डारे हे। जइसे सरकार ह अपन सरकारी नवकर मन ल भुलवार के हड़ताल ल बंद करवा देथे तइसे महूं ह ओला कांही कांही भुलवार-चुचचकार के ओकर लांघन हड़ताल ल बंद करवा देथंव।
ओकर जिद के आगू मोर आदर्स ह मढ़िया जथे। ओला मोर ले जादा मोबाइल संग परेम हो गे हे। मोबाइल के सेती मोला तियाग घलो सकत हे। ये बात के मोला पहिलीच ले भूस-भूस रिहीस। एक दिन जब मैं घर आयेंव त फिलमी स्टाईल म एक ठन चिट्ठी ल टेबुल उपर माड़हे देखेंव। ओला पड़हेंव। लिखाय राहय-मोला ऐती-ओती झन खोजबे, मैं अपन मईके जात हॅवं। जब तक घर म मोबाइल नइ आही मैं तोर घर नइ आववं। अब तोर हमर दार नइ चुरय। तलाक देय बर परही ते उहूं ल करे बर तियार हौंव। 
चिट्ठी ल बाच के घर के अंसी-संगसी सब डाहर ल खोज डारंवे नइच पायेंव। ओ तो सिरतोने अपन मईके डाहर रेंग देय रिहीस। मैं ठक्क रही गेंव। पलंग म अल्लर कस गदहा बइठ गेंव। कहूं महिला मन सहीक हमरो बिसेस थाना रहितीस त दहेज परतारना के जबरदस्त केस बनतीस। आज तक ले लड़काच वाला मन दहेज बर बहू ल परतारित करत आवत हें फेर मोर संग तो उल्टा होवत हे। ओ बिगन गतर के मोबाइल बर छोड़िक-छोड़ा के नवबद आगे। एक घव एक झन संगवारी ह मोर मोबाइल नंबर मांगिस। मैं केहेंव-मोर करा तो मोबाइल उ नइ हे रे भई। ओ ह सुन के मोर मुंह ल अइसे देखिस जने मने मैं आदमी नहीं भूत-परेत अव तइसे।
मैं केहेंव-सोंचत हंव महूं मोबाइल ले डारों कहिके। ओला बड़ अचम्हो होगे। जाने मने मैं दुनिया के आठवॉं अचरज आंव तइसे। या फेर मैं ओकर नजर म दुनिया के माने हुए लंबर एक के कंजूस दिखेंव। ओकर चेहरा के ओ भाव उड़ियागे जउन भाव ये रहसिय के उजागर होय के पहिली रिहीस। 
ओकर आगू मैं अपन-आप ल निच्चट हिनहर समझे लगेंव। एक दिन परोसी के हाल-चाल पुछे बर ओकर घर जा परेंव। ओ ह मोला मोबाइल मांगे बर आय होही कहिके पहिलीच ले काहत हे -'ये सारे मोबाईल म अड़बड़ पइसा खरचा होथे ओ दिन पइसा डरवाये हवं सव रूपिया तभो ले मोबाईल म पइसा नइ हे काहत हे। लगबे नई करत हे। तहीं बने हस मोबाइल नइ लेय हस ते। तोर करा कोनो फोन लगा दे कहि के नइ आवंय। तैं टेनसन ले बांचे हस। मैं परसान हो जथवं जेहू-तेहू मोबाइल लगा दे तो एक कनी कही के आ जथें।'
मैं माथ ल नवावत थोक मुस्किया के केहेंव - मैं ह मोबाइल लगाय बर नइ आयें हवं रे भाई, सुने रेहेंव तुंहर घर के भउजी के तबियत खराब हे ते चल हाल-चाल पुछ लेथंव कहि के आ परेंव। परोसी मन ल सुख-दुख के सोर खबर लेते रहना चाही।
परोसी अपन हयसियत बघारत किथे-बड़ काम के घलो हे गा... मोबाईल ह, आज-काल ऐकर बिगन काम घलो नी बनय। मोर मेरन तो मंतरी, विधायक, बड़े-छोटे साहेग बाबू मन के मोबाइल आते रिथें, वाहा दिल्ली, कलकत्ता, बंबई तक ले फोन आथे। मंत्रालय ले तो दिन भर, मैं असकटिया घलो जथव। तोर करा तो अइसन कोनों बुताच नइ हे, का फायदा अइसन रोग पोसे ले ? पइसा अलग खरचा होथे।
मैं परोसी के वियंग बानी ल समझत रेहेंव, अपन आप ल पहुंचवाला साबित करना चाहत रिहीस। ओ मोर स्वाभिमान ल ठेस मारत रिहीस। मोला चिल्हर समझ लीस। एक तो मैं अपन गोसइन के सेती परसान रेहेंव। याहा उमर म भला कोन जोरू-मरद अलग रेहे सकही।
अइसन स्थिति म मंतरी विधायक ले जादा मोर गोसाइन ल महत्व देय ल परही। मैं तुरते एक ठन मोबाईल बिसा डारेंव, अउ ओला मोबाइल करेंव-हलो... ओ ह मोबाईल म घलो मोर मारवा ल ओरख डारिस बड़ मया करत अपन कोइली कस मीठ गोठ म गोठियईस या... मोबाईल लान डारेव का जी...? हव तै कब आवत हस ? ऐदे लहुटती पछिन्दर मैं तुरते आवत हवं। ओकर मीठ बोली ह  मोला करेला ले जादा करू लागत रिहीस। फेर का करबे गोसाइन ल तो खुस राखेच ल परथे। जउन मन अपन गोसाईन ल नाखुस राखथें तेन मन हमेसा दुख म रथें।
घर आ के मोबाइल ल बड़ पियार छलकावत अपन मुंह म टेकइस अपन सखी सहेली मन संग घंटा भर ले गोठियाईस का साग का भात ल ले के सास-ससुर, देरान-जेठान, ननद-भऊजी, गाहना गुठा जम्मो गोंठ ल कर डारिस, मोबाईल म घलो चारी चुगरी के गोठ हो गे। जादा करके अइसे परोसिन मन संग गोठियाईस जऊन मन ओला मोबाईल बर चिड़हाय राहांय। चाहाक-चाहाक के घंटा भर ले।
ये डाहार मोर हिरदे के धुकधुकी बाढ़त राहय, काबर कि मोबाईल म पइसा उरकत राहय। फेर का करबे गोसाइन के सुख के आगू पइसा उरकई ह महत्व नइ राखय। मैं ओकर खुस होवई ल देखके अपन आप ल धन्य मानेव आज मैं अनभो करत रेहेंव कि दूरसंचार क्रांति ह मोला ऐक्कीसवीं सदी म लान दिस। ऐकर श्रेय मैं अपन गोसाइन ल देथव अतक दिन ले मैं आदिम जुग म रेहेंव। जबले मैं मोबाइल लाये हवं तब ले गोसाइन ह मोला बड़ मया करत हे। हम दुनों झन बड़ खुस हावन। अब महूं अपन आप ल हयसियत वाला महसुस करत हवं।
मोरो एक झन संगवारी ह मोला मोबाइल लंबर पुछें रिहीस तऊनों ल लंबर देंव। काबर कि ओला बताना रिहीस कि अब मोरो करा मोबाइल आगे। महूं हयसियत वाला हो गेंव। अब तो हमन मोबाइल ल अइसे पोटारे रथन जइसे अंगरेजियत मन कुकुर ल पोटारे रथें।
मौहारी भाठा महासमुंद छत्तीसगढ़

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