शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य : पत्नी पीड़ित संघ

व्यंग्यकार श्री विट्ठलराम साहू ‘निश्छल’ रायपुर छत्तीसगढ़ 

पत्नी पीड़ित संघ के अध्यक्ष ह जब सुनिस कि सरकार हा 2011 बरस ल नारी ससक्तिकरण बरस घोसित करे हे त ओला संसो होगे। तुरते आफतकाल बइटका बलईस। बइटका म जम्मो सदस्य मन जरूरी-जरूरी समस्या उपर चर्चा करीन। अध्यक्ष कहिथे-संघ के जुझारू संगवारी हो, एक ठन जबरदस्त बिपत अवईया हे तेखर मुकाबला करे बर परही। तुमन जम्मो संगवारी मन ल आगू आए बर बलावत हौं। 
हमन संघ कोती ले सरकार ल समें-समें म गोसईन मन के अतियाचार करई ल गोहराय हन। फेर सरकार ह आज ले हमर पीरा ल नई समझीस, तेखर सेती काहीं धियान नई देवत हे। हमर गोसईन मन ल अऊ सक्तिसाली बनावत हे। पहिलीच ले कमंती कमजोरहा हें तेन मं ?
जम्मो सदस्य मन हात ऊचा-ऊचा के ऐके संग एक अवाज ले अपन-अपन सहमति दिन। संघ के अध्यक्ष ह फेर निवेदन करीस- सांति राहाव संगवारी हो, सांति राहाव। हमन डौकी मन के का-का तपनी ल नई झेलेन, ओ मन जब काम-बूता करे बर घर ले बाहिर जाथें त हमन ऊंखन चूलहा-चौकी, बरतन-भाड़ा लईका-पिचका ल सम्हाल्थन। बजार ले रासन पानी, साग-भाजी, जम्मो जीनिस ल लानथन। चाहा-पानी, नास्ता अऊ दार-भात, साग ल रांध के लोग-लईका अऊ डौकी के महतारी बाप अऊ भाई मन ल पोरसथन।  फेर हमू मन ल तो इसकूल, आफिस, कारखाना, कामधंधा म जाए ल परथे।  अतक बूता करे के बाद घलव हमन ल ऊंखर पंचइत सहे-सुने ल परथे। उपर ले महिला मंडल वाले मन हमन ल घुड़की चमकी देथें। कहिथें-कहूं हमर महिला मंडल मन ल तंग करेव त फेर खियाल कर लेहू। तुमन ल महिला थाना के हवा खवा दे जाही। दहेज प्रकरन म तुंहर जमानत घलो नई होही। 
का करन ऊंखर आगू म हमन हांत जोर के ठाढ़े रहिथन। हमन घरवाली बर जइसन नहीं तइसन करे बर तियार रहिथन।  ये मन अपन परोसिन के आगू म फोकट के अपन सान बघारे बर आए दिन ये लान, ओ लान, अइसे कर, ओइसे कर कहिके सहीं गलत जौन भी आडर फरमावत रहिथें।
ये तो संसार जानत हे कि नारी मन त नर मन के प्रेरना सरोत आएं। इंखर सेती डाकू ह संत अऊ संत हा डाकू बन जाथें।  बड़े-बड़े कवि, लेखक, साहित्यकार मन अपन-अपन घर गोसंइन ले प्रेरित हो के आगू बढ़थें। मोला तो लागथे देस म जौंन बड़े-बड़े नामी गिरामी मन अपन घरवाली के कहे ले करोड़ों रूपिया के भ्रस्टाचार करते हें, जौंन पति बिचारा मन ऊंखर फरमईस ल पूरा कर डारथैं तौंन मन अपन पत्नी के अतियाचार ले बांच जाथें। फेर अइसे-अइसे गरूआ पुरूष हें जौंन अपन नारी मन के आनी-बानी के फरमईस ल पूरा नई कर सकंय। ऊंखर ऊपर दुख के पहाड़ टूट परथें। पति बिचारा का करय, जइसे तइसे झेलथे। 
संगवारी हो जौन नारी मन काम काजी हें ओ मन तो अपन काम के ठऊर के संगी-साथी मन संग अपन मन ल मड़ा लेथें। अऊ जौन स्त्री मन घरू आंय ओ मन कलप महिला मंडल, कीटी पाल्टी वाले मन संग अपन मन बहला लेथें। फेर हम नारी मन ले दबाए कुचराए मन कहां जावन ? आफिस म बास के डर, घर म नारी के। जब नारी मन ल कहूं आए जाए बर होथे त पहिली ल चेतावत रहिथें-आज थोकन जल्दी आबे मोला फलाना जघा जाना हे कहिके हमन ल साहब ल उल्लू बनाके आए ल परथे।  नारी के सेती नर ल अपन सियान दाई-ददा तक ल तियागे बर परथे।
समझ म नई आवय भई सरकार ह नारी मन ल अतका काबर बड़हावा देवथें ? दूसर सदस्य कहिथें-हमन आफिस ले आके घर के कोनो बूता नई करन। खास कर के घरवाली के भाई सारा के तो अऊ नई करन।  तिसरा सदस्य-हमन नारी  के आफिस के बड़े साहब बर काहीं इंतिजाम नई
करन, ये हमर स्वाभिमान के खिलाफ आए। हमरे घर म दूसर के गुलामी करथन ये तो बड़ा सरम के बात ए।  चौथ सदस्य- बड़ दुखी होवत कहिथे- याहा का सामाजिक बेवस्था ए ? पुरूष के रिस्तेदार मन के अपमान अऊ स्त्री के मइके मन ल खीर पुड़ी ? इंखर नजर म ससुरार मन के काहीं कीम्मत नई हे ?  का इही दिन बर दाई-ददा मन हमन ला पैदा करे रिहीन ? पाले-पोसे पढ़हाए लिखाए रिहीन? बेटा-बहू, नाती-पंथी के राहात ले ओ मन ल वृद्धाश्रम म काबर रहे ल परथे ? एक झन सदस्य ह ओखर आंखी मं आंसू डबडबागे रहाय, कहिथे- पति ल पत्नी ह चाहे जौन सजा देवय फेर ओखर इज्जत ल ठेस मारना बरदास्त के बाहिर हो जथे। पति ह पत्नी ल संसार के सरि सुख ल दे सकत हे। मोला दुख दे के इही कारन ए।  आए दिन मोर आतमा ल दुखाथे। 
अऊ एक झन सदस्य कहिथे- मोर घरवाली रात ले किंदरथे, दूसर-दूसर पुरूष जात मन संग इहां-ऊहां आवत जात रहिथें। कांही केहे ते तोर खैर नई हे। ओ हा मोर नाव ले नहीं, मैं हा ओखर नाव ले जाने जाथंव। 
ये जम्मो समस्या ल ज्ञापन म लिख के पत्नी पीड़ित संघ जिंदाबाद के नारा लगा के आज के सभा के बिसरजन होईस।  जम्मो पति जात मन डर्राए अपन-अपन घर डाहार रेंगिन।
  • विट्ठलराम साहू ‘निश्छल’ रायपुर छत्तीसगढ़

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