शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य : पत्नी पीड़ित संघ

व्यंग्यकार श्री विट्ठलराम साहू ‘निश्छल’ रायपुर छत्तीसगढ़ 

पत्नी पीड़ित संघ के अध्यक्ष ह जब सुनिस कि सरकार हा 2011 बरस ल नारी ससक्तिकरण बरस घोसित करे हे त ओला संसो होगे। तुरते आफतकाल बइटका बलईस। बइटका म जम्मो सदस्य मन जरूरी-जरूरी समस्या उपर चर्चा करीन। अध्यक्ष कहिथे-संघ के जुझारू संगवारी हो, एक ठन जबरदस्त बिपत अवईया हे तेखर मुकाबला करे बर परही। तुमन जम्मो संगवारी मन ल आगू आए बर बलावत हौं। 
हमन संघ कोती ले सरकार ल समें-समें म गोसईन मन के अतियाचार करई ल गोहराय हन। फेर सरकार ह आज ले हमर पीरा ल नई समझीस, तेखर सेती काहीं धियान नई देवत हे। हमर गोसईन मन ल अऊ सक्तिसाली बनावत हे। पहिलीच ले कमंती कमजोरहा हें तेन मं ?
जम्मो सदस्य मन हात ऊचा-ऊचा के ऐके संग एक अवाज ले अपन-अपन सहमति दिन। संघ के अध्यक्ष ह फेर निवेदन करीस- सांति राहाव संगवारी हो, सांति राहाव। हमन डौकी मन के का-का तपनी ल नई झेलेन, ओ मन जब काम-बूता करे बर घर ले बाहिर जाथें त हमन ऊंखन चूलहा-चौकी, बरतन-भाड़ा लईका-पिचका ल सम्हाल्थन। बजार ले रासन पानी, साग-भाजी, जम्मो जीनिस ल लानथन। चाहा-पानी, नास्ता अऊ दार-भात, साग ल रांध के लोग-लईका अऊ डौकी के महतारी बाप अऊ भाई मन ल पोरसथन।  फेर हमू मन ल तो इसकूल, आफिस, कारखाना, कामधंधा म जाए ल परथे।  अतक बूता करे के बाद घलव हमन ल ऊंखर पंचइत सहे-सुने ल परथे। उपर ले महिला मंडल वाले मन हमन ल घुड़की चमकी देथें। कहिथें-कहूं हमर महिला मंडल मन ल तंग करेव त फेर खियाल कर लेहू। तुमन ल महिला थाना के हवा खवा दे जाही। दहेज प्रकरन म तुंहर जमानत घलो नई होही। 
का करन ऊंखर आगू म हमन हांत जोर के ठाढ़े रहिथन। हमन घरवाली बर जइसन नहीं तइसन करे बर तियार रहिथन।  ये मन अपन परोसिन के आगू म फोकट के अपन सान बघारे बर आए दिन ये लान, ओ लान, अइसे कर, ओइसे कर कहिके सहीं गलत जौन भी आडर फरमावत रहिथें।
ये तो संसार जानत हे कि नारी मन त नर मन के प्रेरना सरोत आएं। इंखर सेती डाकू ह संत अऊ संत हा डाकू बन जाथें।  बड़े-बड़े कवि, लेखक, साहित्यकार मन अपन-अपन घर गोसंइन ले प्रेरित हो के आगू बढ़थें। मोला तो लागथे देस म जौंन बड़े-बड़े नामी गिरामी मन अपन घरवाली के कहे ले करोड़ों रूपिया के भ्रस्टाचार करते हें, जौंन पति बिचारा मन ऊंखर फरमईस ल पूरा कर डारथैं तौंन मन अपन पत्नी के अतियाचार ले बांच जाथें। फेर अइसे-अइसे गरूआ पुरूष हें जौंन अपन नारी मन के आनी-बानी के फरमईस ल पूरा नई कर सकंय। ऊंखर ऊपर दुख के पहाड़ टूट परथें। पति बिचारा का करय, जइसे तइसे झेलथे। 
संगवारी हो जौन नारी मन काम काजी हें ओ मन तो अपन काम के ठऊर के संगी-साथी मन संग अपन मन ल मड़ा लेथें। अऊ जौन स्त्री मन घरू आंय ओ मन कलप महिला मंडल, कीटी पाल्टी वाले मन संग अपन मन बहला लेथें। फेर हम नारी मन ले दबाए कुचराए मन कहां जावन ? आफिस म बास के डर, घर म नारी के। जब नारी मन ल कहूं आए जाए बर होथे त पहिली ल चेतावत रहिथें-आज थोकन जल्दी आबे मोला फलाना जघा जाना हे कहिके हमन ल साहब ल उल्लू बनाके आए ल परथे।  नारी के सेती नर ल अपन सियान दाई-ददा तक ल तियागे बर परथे।
समझ म नई आवय भई सरकार ह नारी मन ल अतका काबर बड़हावा देवथें ? दूसर सदस्य कहिथें-हमन आफिस ले आके घर के कोनो बूता नई करन। खास कर के घरवाली के भाई सारा के तो अऊ नई करन।  तिसरा सदस्य-हमन नारी  के आफिस के बड़े साहब बर काहीं इंतिजाम नई
करन, ये हमर स्वाभिमान के खिलाफ आए। हमरे घर म दूसर के गुलामी करथन ये तो बड़ा सरम के बात ए।  चौथ सदस्य- बड़ दुखी होवत कहिथे- याहा का सामाजिक बेवस्था ए ? पुरूष के रिस्तेदार मन के अपमान अऊ स्त्री के मइके मन ल खीर पुड़ी ? इंखर नजर म ससुरार मन के काहीं कीम्मत नई हे ?  का इही दिन बर दाई-ददा मन हमन ला पैदा करे रिहीन ? पाले-पोसे पढ़हाए लिखाए रिहीन? बेटा-बहू, नाती-पंथी के राहात ले ओ मन ल वृद्धाश्रम म काबर रहे ल परथे ? एक झन सदस्य ह ओखर आंखी मं आंसू डबडबागे रहाय, कहिथे- पति ल पत्नी ह चाहे जौन सजा देवय फेर ओखर इज्जत ल ठेस मारना बरदास्त के बाहिर हो जथे। पति ह पत्नी ल संसार के सरि सुख ल दे सकत हे। मोला दुख दे के इही कारन ए।  आए दिन मोर आतमा ल दुखाथे। 
अऊ एक झन सदस्य कहिथे- मोर घरवाली रात ले किंदरथे, दूसर-दूसर पुरूष जात मन संग इहां-ऊहां आवत जात रहिथें। कांही केहे ते तोर खैर नई हे। ओ हा मोर नाव ले नहीं, मैं हा ओखर नाव ले जाने जाथंव। 
ये जम्मो समस्या ल ज्ञापन म लिख के पत्नी पीड़ित संघ जिंदाबाद के नारा लगा के आज के सभा के बिसरजन होईस।  जम्मो पति जात मन डर्राए अपन-अपन घर डाहार रेंगिन।
  • विट्ठलराम साहू ‘निश्छल’ रायपुर छत्तीसगढ़

शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य : संपत अउ बिपत म भगवान

व्यंग्यकार - श्री विट्ठलराम साहू 'निश्छल'
एक समे के बात आय, राजा फिलिप ह एक दिन अपन महल के छत ऊपर ठाढ़े रहाय। ओतके बेरा ओ देखथे कि एक झन कैदी ल फांसी देय के तिआरी चलत रहाय। ओ भगवान ल गोहराइस- ‘हे भगवान, मोर ऊपर तोर महान किरपा हे, मैं आज राजगद्दी के परम सुख ल भोगत हॉव, अउ एला फांसी के तकता म लटके बर परत हे। पाछू म ठाढ़े राजा के गुरू ओखर गोहरई ल सुनके कहिथे-राजा तैं बिसरत हस, भगवान के जौंन किरपा ले तोला राजभोग मिले हे, उही किरपा ले कैदी ल फांसी के सजा घलौ मिले हे, कइसे महान सत्य हे। आदमी के सोंच कइसे छोटे हे। लौकिक सुख म भगवान के किरपा समझ। अउ दुख म अकिरपा देखते। ओकर किरपा तो चौबीसों घंटा सब जीव ऊपर होवत रहिथे। हमर नान्हे सोंच के सेती अनुभूति अउ साक छात्कार नई होवय।‘ 
हमला भगवान के किरपा के रद्दा नई देखना हे बल्कि, ओखर समीक्छा करना हे। अगोरा तो ओखर करे जाथे जौंन ह हमला प्राप्त नई होय हे। पाए जीनिस के समीक्छा होथे। परमात्मा खुदे मंगल होथे। 
‘मंगलं भगवान विर्ष्णुमंगलम् गरूड़ध्वजम्।
मंगलम् पुण्डरीकाक्षो मंगला यतनो हरिः।।‘ (गरूड़पुराण खं. 35/46)
मंगल सरूप भगवान कभू अमंगल नई करय। बिसनु सहस्त्र नाम स्त्रोत में भगवान के स्वस्तिद, स्वस्ति द्व स्वस्ति, स्वस्तिमुक, स्वस्तिदाक्षिण आदि मंगल करइया नाव हे। ओखरे सेती परमात्मा के सबो बिधान ह कल्यान करइया होथे। ये मंगल करइया बिसनु सबो डहार बियाप्त हे। जिनगी अउ मिरतुक म, मीत अउ बैरी म, रोग अउ निरोग म, धन पाय अउ गंवाय म, मान अउ अपजस म, हमला सबे मंगलकारी परमात्मच के किरपा के अनुभूति करना चाही। तेखरे सेती गीताजंलि के कवि सिरि रविन्द्रनाथ ठाकुर ह भाव म बसीभूत होके गाय रिहिस- ‘हे परमपिता परमेश्वर मोला आ सक्ति दे जेखर ले मैं जिनगी के सबो सरवांग मन ल परेम ले अपना संकव, चाहे कोनो खुसी के छन होवय, चाहे दुःख के, लाभ होवय चाहे हानि के, उदय के होवय चाहे अस्त के।‘
नरसी मेहता के बेटा सामलसाह के इंदकाल होगे अउ गावत हे- ‘भलुं थयु मांगी जंजाल, सुखे भजेंसुं श्री गोपाल।‘
अच्छा होगे जंजाल छूटगे, अब सुख से मैं भगवान के भजन करहूं। 
ओ कहिथे- जे गम्यूं जगत गुरूदेव जगदीश तू तणे खरोरा कोक करयो।‘
‘आपणें चिंताओं अर्थ कई नवसरे, डगरे एक उद्वेग धरवो।‘
ये संसार म जेखर ले परेम रिहीस तौन ल गुरू देव जगदीश ह ले गे अब मोर संसों करे के कोनो बाते नइहे। एक ठन भाव ले अब मोला छुट्टी मिलगे। 
संत तुकाराम के पतनि बड़ गुस्सेल बानी अउ बड़ करकस राहाय, तेखर बर ओ ह भगवान ल धनियावाद देवत कहिथे - ‘मोर घरवाली के सुभाव ह मोर लइक नइहे तेखर सेती मैं ह ओखर मोह माया म नई फंदाएव, तेखर सेती भगवान ह मोला साहज म मिलगे। जादा कोसिस करे बर नई परीस।‘
एक नाथजी के घरवाली घलौ एक नाथ संग छत्तीस के आंकड़ा राहाय, ओह भगवान के अभार के रूप म मानय कि ओखर घरवाली ह एकनाथ के साधना भक्ति म सहायता करय। अइसने नरसी मेहता ह बेटा के मिरतु म, संत तुकाराम ह बिपरित बिचार वाली गोसइन पायके सेती, अउ एकनाथ जी बिपरित समझ वाली घरवाली पा के घलौ परमात्मा ल धनियावाद दिस।
एक झन गौतमी के एकलौता बेटा मरगे, ओ दुःखी हो के भगवान बुद्ध मेरन अइस अउस दिकछा ले लिस। ओखर एके परवचन ले पांच सौ माई लोगन मन दिकछा ले के बौद्ध भिक्षुणी बनगे। पटाचारा के आगू के जिनगी के कहिनी अइसे रिहिस-ओ अपन दाई-ददा के बिचार के बिरूध अपन मन के बिहाव कर डारीस अउ परदेस म चल दिस। दु झन बेटा होय के बाद एक दिन अपने दाई-ददा संग भेंट करे बर अइस। संग म ओखर घरवाला अउ दुनो बेटा मन राहांय। रस्ता म घनघोर जंगल परीस। ओखर घरवाला ल सांप चाब देथे, ओ मर जथे। एक झन बेटा ल बघवा उठा के लेग जथे। अउ एक झन बेटा ह एक ठन झाड़-झंखाड़ के भुतका म खुसरीस ते उहां ले निकरबे नई करीस, कोजनि कहां अछिप होगे। ते पताच नई चलिस। पटाचारा का करय हतास होके दुःखी होगे। अपन दाई-ददा मेरन जाथे। ऊंहा गिस त लोगन बतइस कि जौन घर म राहात रीहीन तौन ह भसक के गिर गे उही म चपका के दाई-ददा दुनो मरगें। ओमन ल मरे तो बरसों बित गे राहाय। का करय ओ ह भगवान बुद्ध के सरन म अइस। तथागत ह ओला असार संसार के गियान कराथे। सासवत शांति अउ सुख-दुःख ले अलग जिनगी के नासवान होय के रहसिय ल समझा के ओखर मन म बइठे मोह-माया के जंजाल ल छोड़इस। तीन-तीन ठन दुःख के ज्वाला तपाय पटाचारा ल भगवान तथागत के बानी ले परम सांति अउ समाधान मिलिस।
संत रविदास ननपन ले कतको परेमी मन के दुख, भीसन गरीबी, बेमारी, गुलामी ल निडर होके हांसत-हांसत झेलिस। भगवान के करूना-किरपा अउ नियाव प्रियता के बिसय म संखा करना भक्त रविदास के बिचार म मुरूखपना अउ सरद्धा के सीमा रीहिस।
जौंन बिपत्ति परमात्म के अखंड सुरता कराथे। मोह ह सराप नहीं बरदान ये। अकिरपा नहीं अनुग्रह ये। नारद पंचरात्र में खुद परमात्मा के बचन हे- ‘देशत्यागामहान व्यार्धिविरोधी सक्षणम।
देसतियाग, महारेाग, ददा-भाई मन ले बिरोध, धन हानि अउ अपमान ए मोर किरपा के लक्छन ए।‘
गीता म घलो भगवान कहे हे ‘जेखर बर मैं अनुग्रह करावौं ओखर धन ल धीरे-धीरे हरन कर लेथंव। जब ओ ह कंगाल हो जथे तब ओखरे सगा-संबंधी मन ओखर संग ल छोड़ देथें। फेर जब ओखर धन कमाय के सबो कोसिस ह कांही मतलब के नई होवय। अउ ओखर से मन ह बैराग हो जथे। तब ओ ह मोर परेमी के भक्त के आसरा लेके ओखर संग सांठ-गांठ करे बर धरथे। उही बेखत मैं ओखर बर मया करथंव।‘
भगवान ह इंद्र के मानहानि करत बेखत कहिस-‘इंद्र तैं अपन सान अउ वैभव के निसा म बउरावत रेहे तेखर सेती तोर ऊपर अनुग्रह करके तोर जग ल भंग करेंव, एखर सेती कि तैं मोला सदा सुरता करस। जौन धन-दौलत अउ बड़ई के सेती घमंड म अंधरा हो जथे। तेन ह मोर सहिक सजा देवइया ल नई देखय। मैं जेखर ऊपर अनुग्रह करना चाहथंव, तेखर मान, बड़ई ल भ्रस्ट कर देथंव।‘
हमन परमात्मा के कैलानकारी बरजना ल समझन नई सकन, आदमी ह परमात्मा के मन ले अपन मन ल मिला देवय त सदा दिन बर सुखी रही सकत हें। महात्मा इशू ह कहिथे -‘परमेश्वर के इच्छा ले बढ़के अउ कोनों नइ हे। ओखर ले कमसल घलौ कखरो ले कम नई होवय। अउ दुसर कांहीच नई है। भगवान सबके मन के बात ल जानथे-समझथे, तभो ले अगियानता के सेती हमन अपन जरूरत ल ओला बतावन, त जौन जुआप हमर भलई करइया आय तेन ला पाय बर ओ अगमजानी ऊपर भरोसा करना चाही।‘
0 विट्ठलराम साहू 'निश्छल' मौहारी भाठा महासमुंद छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य - अब महूं हयसियत वाला होगेव

व्यंग्यकार - श्री विट्ठलराम साहू 'निश्छल'
जब कोनों कखरो घर बइठे-उठे बर जाथें त उंहा देसी-बिदेसी कांही जीनीस ल देखथें त मन म एक ठन बात उठथे कि अइसने जीनीस मोर घर काबर नइ हे ? का मोर हयसियत नइ हे? आज के जमाना म जेकर करा जतका बिलासता के समान रही, ओ ह ओतके अपन-आप ल सभ्य अउ हयसियत वाला समझथे। फेर मे ह ये सब बात के परवाह नइ करंव। मैं अपन आदर्श म अड़े हावव। मैं अपन जिनगी म अर्थशास्त्र के उपयोगिता हास नियम के कड़ाई ले पालन करे म बिसवास करथेव।
जब ले मोर गोसइन ह परोसी घर मोबाइल देख के आय हे तब ले ओ मोबाइल बर रोजना धर देय हे। कहिथे हगरा-पदरा मन मोबाइल धरे किंदरत रहिये। फेर कोन जनी हमर घर काबर मोबाइल नइ लानत हे ते ? कोन जुग म हावे ते? इहां लोगन कहां ले कहां निकरत हें। ये ह सव साल पाछू म जीयत हे। 
मेह गोसाइन के ताना ल सुन-सुन के पानी-पानी हो जथवं। जब-जब परोसी मन घर ले कांही नवा जीनीस देख के आथे, तब-तब मोला ओ जीनीस ल लान कहिके पदनीपाद पदोथे। ओ ह रंगीन टी.वी. कूलर वाशिंग मशीन, मिकसी, सीडी प्लेयर को जनी का-का जीनीस बर भूख हड़ताल कर डारे हे। जइसे सरकार ह अपन सरकारी नवकर मन ल भुलवार के हड़ताल ल बंद करवा देथे तइसे महूं ह ओला कांही कांही भुलवार-चुचचकार के ओकर लांघन हड़ताल ल बंद करवा देथंव।
ओकर जिद के आगू मोर आदर्स ह मढ़िया जथे। ओला मोर ले जादा मोबाइल संग परेम हो गे हे। मोबाइल के सेती मोला तियाग घलो सकत हे। ये बात के मोला पहिलीच ले भूस-भूस रिहीस। एक दिन जब मैं घर आयेंव त फिलमी स्टाईल म एक ठन चिट्ठी ल टेबुल उपर माड़हे देखेंव। ओला पड़हेंव। लिखाय राहय-मोला ऐती-ओती झन खोजबे, मैं अपन मईके जात हॅवं। जब तक घर म मोबाइल नइ आही मैं तोर घर नइ आववं। अब तोर हमर दार नइ चुरय। तलाक देय बर परही ते उहूं ल करे बर तियार हौंव। 
चिट्ठी ल बाच के घर के अंसी-संगसी सब डाहर ल खोज डारंवे नइच पायेंव। ओ तो सिरतोने अपन मईके डाहर रेंग देय रिहीस। मैं ठक्क रही गेंव। पलंग म अल्लर कस गदहा बइठ गेंव। कहूं महिला मन सहीक हमरो बिसेस थाना रहितीस त दहेज परतारना के जबरदस्त केस बनतीस। आज तक ले लड़काच वाला मन दहेज बर बहू ल परतारित करत आवत हें फेर मोर संग तो उल्टा होवत हे। ओ बिगन गतर के मोबाइल बर छोड़िक-छोड़ा के नवबद आगे। एक घव एक झन संगवारी ह मोर मोबाइल नंबर मांगिस। मैं केहेंव-मोर करा तो मोबाइल उ नइ हे रे भई। ओ ह सुन के मोर मुंह ल अइसे देखिस जने मने मैं आदमी नहीं भूत-परेत अव तइसे।
मैं केहेंव-सोंचत हंव महूं मोबाइल ले डारों कहिके। ओला बड़ अचम्हो होगे। जाने मने मैं दुनिया के आठवॉं अचरज आंव तइसे। या फेर मैं ओकर नजर म दुनिया के माने हुए लंबर एक के कंजूस दिखेंव। ओकर चेहरा के ओ भाव उड़ियागे जउन भाव ये रहसिय के उजागर होय के पहिली रिहीस। 
ओकर आगू मैं अपन-आप ल निच्चट हिनहर समझे लगेंव। एक दिन परोसी के हाल-चाल पुछे बर ओकर घर जा परेंव। ओ ह मोला मोबाइल मांगे बर आय होही कहिके पहिलीच ले काहत हे -'ये सारे मोबाईल म अड़बड़ पइसा खरचा होथे ओ दिन पइसा डरवाये हवं सव रूपिया तभो ले मोबाईल म पइसा नइ हे काहत हे। लगबे नई करत हे। तहीं बने हस मोबाइल नइ लेय हस ते। तोर करा कोनो फोन लगा दे कहि के नइ आवंय। तैं टेनसन ले बांचे हस। मैं परसान हो जथवं जेहू-तेहू मोबाइल लगा दे तो एक कनी कही के आ जथें।'
मैं माथ ल नवावत थोक मुस्किया के केहेंव - मैं ह मोबाइल लगाय बर नइ आयें हवं रे भाई, सुने रेहेंव तुंहर घर के भउजी के तबियत खराब हे ते चल हाल-चाल पुछ लेथंव कहि के आ परेंव। परोसी मन ल सुख-दुख के सोर खबर लेते रहना चाही।
परोसी अपन हयसियत बघारत किथे-बड़ काम के घलो हे गा... मोबाईल ह, आज-काल ऐकर बिगन काम घलो नी बनय। मोर मेरन तो मंतरी, विधायक, बड़े-छोटे साहेग बाबू मन के मोबाइल आते रिथें, वाहा दिल्ली, कलकत्ता, बंबई तक ले फोन आथे। मंत्रालय ले तो दिन भर, मैं असकटिया घलो जथव। तोर करा तो अइसन कोनों बुताच नइ हे, का फायदा अइसन रोग पोसे ले ? पइसा अलग खरचा होथे।
मैं परोसी के वियंग बानी ल समझत रेहेंव, अपन आप ल पहुंचवाला साबित करना चाहत रिहीस। ओ मोर स्वाभिमान ल ठेस मारत रिहीस। मोला चिल्हर समझ लीस। एक तो मैं अपन गोसइन के सेती परसान रेहेंव। याहा उमर म भला कोन जोरू-मरद अलग रेहे सकही।
अइसन स्थिति म मंतरी विधायक ले जादा मोर गोसाइन ल महत्व देय ल परही। मैं तुरते एक ठन मोबाईल बिसा डारेंव, अउ ओला मोबाइल करेंव-हलो... ओ ह मोबाईल म घलो मोर मारवा ल ओरख डारिस बड़ मया करत अपन कोइली कस मीठ गोठ म गोठियईस या... मोबाईल लान डारेव का जी...? हव तै कब आवत हस ? ऐदे लहुटती पछिन्दर मैं तुरते आवत हवं। ओकर मीठ बोली ह  मोला करेला ले जादा करू लागत रिहीस। फेर का करबे गोसाइन ल तो खुस राखेच ल परथे। जउन मन अपन गोसाईन ल नाखुस राखथें तेन मन हमेसा दुख म रथें।
घर आ के मोबाइल ल बड़ पियार छलकावत अपन मुंह म टेकइस अपन सखी सहेली मन संग घंटा भर ले गोठियाईस का साग का भात ल ले के सास-ससुर, देरान-जेठान, ननद-भऊजी, गाहना गुठा जम्मो गोंठ ल कर डारिस, मोबाईल म घलो चारी चुगरी के गोठ हो गे। जादा करके अइसे परोसिन मन संग गोठियाईस जऊन मन ओला मोबाईल बर चिड़हाय राहांय। चाहाक-चाहाक के घंटा भर ले।
ये डाहार मोर हिरदे के धुकधुकी बाढ़त राहय, काबर कि मोबाईल म पइसा उरकत राहय। फेर का करबे गोसाइन के सुख के आगू पइसा उरकई ह महत्व नइ राखय। मैं ओकर खुस होवई ल देखके अपन आप ल धन्य मानेव आज मैं अनभो करत रेहेंव कि दूरसंचार क्रांति ह मोला ऐक्कीसवीं सदी म लान दिस। ऐकर श्रेय मैं अपन गोसाइन ल देथव अतक दिन ले मैं आदिम जुग म रेहेंव। जबले मैं मोबाइल लाये हवं तब ले गोसाइन ह मोला बड़ मया करत हे। हम दुनों झन बड़ खुस हावन। अब महूं अपन आप ल हयसियत वाला महसुस करत हवं।
मोरो एक झन संगवारी ह मोला मोबाइल लंबर पुछें रिहीस तऊनों ल लंबर देंव। काबर कि ओला बताना रिहीस कि अब मोरो करा मोबाइल आगे। महूं हयसियत वाला हो गेंव। अब तो हमन मोबाइल ल अइसे पोटारे रथन जइसे अंगरेजियत मन कुकुर ल पोटारे रथें।
मौहारी भाठा महासमुंद छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य : पत्नी पीड़ित संघ

व्यंग्यकार श्री विट्ठलराम साहू ‘निश्छल’ रायपुर छत्तीसगढ़  पत्नी पीड़ित संघ के अध्यक्ष ह जब सुनिस कि सरकार हा 2011 बरस ल नारी ससक्तिकरण बर...