शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य : पत्नी पीड़ित संघ

व्यंग्यकार श्री विट्ठलराम साहू ‘निश्छल’ रायपुर छत्तीसगढ़ 

पत्नी पीड़ित संघ के अध्यक्ष ह जब सुनिस कि सरकार हा 2011 बरस ल नारी ससक्तिकरण बरस घोसित करे हे त ओला संसो होगे। तुरते आफतकाल बइटका बलईस। बइटका म जम्मो सदस्य मन जरूरी-जरूरी समस्या उपर चर्चा करीन। अध्यक्ष कहिथे-संघ के जुझारू संगवारी हो, एक ठन जबरदस्त बिपत अवईया हे तेखर मुकाबला करे बर परही। तुमन जम्मो संगवारी मन ल आगू आए बर बलावत हौं। 
हमन संघ कोती ले सरकार ल समें-समें म गोसईन मन के अतियाचार करई ल गोहराय हन। फेर सरकार ह आज ले हमर पीरा ल नई समझीस, तेखर सेती काहीं धियान नई देवत हे। हमर गोसईन मन ल अऊ सक्तिसाली बनावत हे। पहिलीच ले कमंती कमजोरहा हें तेन मं ?
जम्मो सदस्य मन हात ऊचा-ऊचा के ऐके संग एक अवाज ले अपन-अपन सहमति दिन। संघ के अध्यक्ष ह फेर निवेदन करीस- सांति राहाव संगवारी हो, सांति राहाव। हमन डौकी मन के का-का तपनी ल नई झेलेन, ओ मन जब काम-बूता करे बर घर ले बाहिर जाथें त हमन ऊंखन चूलहा-चौकी, बरतन-भाड़ा लईका-पिचका ल सम्हाल्थन। बजार ले रासन पानी, साग-भाजी, जम्मो जीनिस ल लानथन। चाहा-पानी, नास्ता अऊ दार-भात, साग ल रांध के लोग-लईका अऊ डौकी के महतारी बाप अऊ भाई मन ल पोरसथन।  फेर हमू मन ल तो इसकूल, आफिस, कारखाना, कामधंधा म जाए ल परथे।  अतक बूता करे के बाद घलव हमन ल ऊंखर पंचइत सहे-सुने ल परथे। उपर ले महिला मंडल वाले मन हमन ल घुड़की चमकी देथें। कहिथें-कहूं हमर महिला मंडल मन ल तंग करेव त फेर खियाल कर लेहू। तुमन ल महिला थाना के हवा खवा दे जाही। दहेज प्रकरन म तुंहर जमानत घलो नई होही। 
का करन ऊंखर आगू म हमन हांत जोर के ठाढ़े रहिथन। हमन घरवाली बर जइसन नहीं तइसन करे बर तियार रहिथन।  ये मन अपन परोसिन के आगू म फोकट के अपन सान बघारे बर आए दिन ये लान, ओ लान, अइसे कर, ओइसे कर कहिके सहीं गलत जौन भी आडर फरमावत रहिथें।
ये तो संसार जानत हे कि नारी मन त नर मन के प्रेरना सरोत आएं। इंखर सेती डाकू ह संत अऊ संत हा डाकू बन जाथें।  बड़े-बड़े कवि, लेखक, साहित्यकार मन अपन-अपन घर गोसंइन ले प्रेरित हो के आगू बढ़थें। मोला तो लागथे देस म जौंन बड़े-बड़े नामी गिरामी मन अपन घरवाली के कहे ले करोड़ों रूपिया के भ्रस्टाचार करते हें, जौंन पति बिचारा मन ऊंखर फरमईस ल पूरा कर डारथैं तौंन मन अपन पत्नी के अतियाचार ले बांच जाथें। फेर अइसे-अइसे गरूआ पुरूष हें जौंन अपन नारी मन के आनी-बानी के फरमईस ल पूरा नई कर सकंय। ऊंखर ऊपर दुख के पहाड़ टूट परथें। पति बिचारा का करय, जइसे तइसे झेलथे। 
संगवारी हो जौन नारी मन काम काजी हें ओ मन तो अपन काम के ठऊर के संगी-साथी मन संग अपन मन ल मड़ा लेथें। अऊ जौन स्त्री मन घरू आंय ओ मन कलप महिला मंडल, कीटी पाल्टी वाले मन संग अपन मन बहला लेथें। फेर हम नारी मन ले दबाए कुचराए मन कहां जावन ? आफिस म बास के डर, घर म नारी के। जब नारी मन ल कहूं आए जाए बर होथे त पहिली ल चेतावत रहिथें-आज थोकन जल्दी आबे मोला फलाना जघा जाना हे कहिके हमन ल साहब ल उल्लू बनाके आए ल परथे।  नारी के सेती नर ल अपन सियान दाई-ददा तक ल तियागे बर परथे।
समझ म नई आवय भई सरकार ह नारी मन ल अतका काबर बड़हावा देवथें ? दूसर सदस्य कहिथें-हमन आफिस ले आके घर के कोनो बूता नई करन। खास कर के घरवाली के भाई सारा के तो अऊ नई करन।  तिसरा सदस्य-हमन नारी  के आफिस के बड़े साहब बर काहीं इंतिजाम नई
करन, ये हमर स्वाभिमान के खिलाफ आए। हमरे घर म दूसर के गुलामी करथन ये तो बड़ा सरम के बात ए।  चौथ सदस्य- बड़ दुखी होवत कहिथे- याहा का सामाजिक बेवस्था ए ? पुरूष के रिस्तेदार मन के अपमान अऊ स्त्री के मइके मन ल खीर पुड़ी ? इंखर नजर म ससुरार मन के काहीं कीम्मत नई हे ?  का इही दिन बर दाई-ददा मन हमन ला पैदा करे रिहीन ? पाले-पोसे पढ़हाए लिखाए रिहीन? बेटा-बहू, नाती-पंथी के राहात ले ओ मन ल वृद्धाश्रम म काबर रहे ल परथे ? एक झन सदस्य ह ओखर आंखी मं आंसू डबडबागे रहाय, कहिथे- पति ल पत्नी ह चाहे जौन सजा देवय फेर ओखर इज्जत ल ठेस मारना बरदास्त के बाहिर हो जथे। पति ह पत्नी ल संसार के सरि सुख ल दे सकत हे। मोला दुख दे के इही कारन ए।  आए दिन मोर आतमा ल दुखाथे। 
अऊ एक झन सदस्य कहिथे- मोर घरवाली रात ले किंदरथे, दूसर-दूसर पुरूष जात मन संग इहां-ऊहां आवत जात रहिथें। कांही केहे ते तोर खैर नई हे। ओ हा मोर नाव ले नहीं, मैं हा ओखर नाव ले जाने जाथंव। 
ये जम्मो समस्या ल ज्ञापन म लिख के पत्नी पीड़ित संघ जिंदाबाद के नारा लगा के आज के सभा के बिसरजन होईस।  जम्मो पति जात मन डर्राए अपन-अपन घर डाहार रेंगिन।
  • विट्ठलराम साहू ‘निश्छल’ रायपुर छत्तीसगढ़

शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य : संपत अउ बिपत म भगवान

व्यंग्यकार - श्री विट्ठलराम साहू 'निश्छल'
एक समे के बात आय, राजा फिलिप ह एक दिन अपन महल के छत ऊपर ठाढ़े रहाय। ओतके बेरा ओ देखथे कि एक झन कैदी ल फांसी देय के तिआरी चलत रहाय। ओ भगवान ल गोहराइस- ‘हे भगवान, मोर ऊपर तोर महान किरपा हे, मैं आज राजगद्दी के परम सुख ल भोगत हॉव, अउ एला फांसी के तकता म लटके बर परत हे। पाछू म ठाढ़े राजा के गुरू ओखर गोहरई ल सुनके कहिथे-राजा तैं बिसरत हस, भगवान के जौंन किरपा ले तोला राजभोग मिले हे, उही किरपा ले कैदी ल फांसी के सजा घलौ मिले हे, कइसे महान सत्य हे। आदमी के सोंच कइसे छोटे हे। लौकिक सुख म भगवान के किरपा समझ। अउ दुख म अकिरपा देखते। ओकर किरपा तो चौबीसों घंटा सब जीव ऊपर होवत रहिथे। हमर नान्हे सोंच के सेती अनुभूति अउ साक छात्कार नई होवय।‘ 
हमला भगवान के किरपा के रद्दा नई देखना हे बल्कि, ओखर समीक्छा करना हे। अगोरा तो ओखर करे जाथे जौंन ह हमला प्राप्त नई होय हे। पाए जीनिस के समीक्छा होथे। परमात्मा खुदे मंगल होथे। 
‘मंगलं भगवान विर्ष्णुमंगलम् गरूड़ध्वजम्।
मंगलम् पुण्डरीकाक्षो मंगला यतनो हरिः।।‘ (गरूड़पुराण खं. 35/46)
मंगल सरूप भगवान कभू अमंगल नई करय। बिसनु सहस्त्र नाम स्त्रोत में भगवान के स्वस्तिद, स्वस्ति द्व स्वस्ति, स्वस्तिमुक, स्वस्तिदाक्षिण आदि मंगल करइया नाव हे। ओखरे सेती परमात्मा के सबो बिधान ह कल्यान करइया होथे। ये मंगल करइया बिसनु सबो डहार बियाप्त हे। जिनगी अउ मिरतुक म, मीत अउ बैरी म, रोग अउ निरोग म, धन पाय अउ गंवाय म, मान अउ अपजस म, हमला सबे मंगलकारी परमात्मच के किरपा के अनुभूति करना चाही। तेखरे सेती गीताजंलि के कवि सिरि रविन्द्रनाथ ठाकुर ह भाव म बसीभूत होके गाय रिहिस- ‘हे परमपिता परमेश्वर मोला आ सक्ति दे जेखर ले मैं जिनगी के सबो सरवांग मन ल परेम ले अपना संकव, चाहे कोनो खुसी के छन होवय, चाहे दुःख के, लाभ होवय चाहे हानि के, उदय के होवय चाहे अस्त के।‘
नरसी मेहता के बेटा सामलसाह के इंदकाल होगे अउ गावत हे- ‘भलुं थयु मांगी जंजाल, सुखे भजेंसुं श्री गोपाल।‘
अच्छा होगे जंजाल छूटगे, अब सुख से मैं भगवान के भजन करहूं। 
ओ कहिथे- जे गम्यूं जगत गुरूदेव जगदीश तू तणे खरोरा कोक करयो।‘
‘आपणें चिंताओं अर्थ कई नवसरे, डगरे एक उद्वेग धरवो।‘
ये संसार म जेखर ले परेम रिहीस तौन ल गुरू देव जगदीश ह ले गे अब मोर संसों करे के कोनो बाते नइहे। एक ठन भाव ले अब मोला छुट्टी मिलगे। 
संत तुकाराम के पतनि बड़ गुस्सेल बानी अउ बड़ करकस राहाय, तेखर बर ओ ह भगवान ल धनियावाद देवत कहिथे - ‘मोर घरवाली के सुभाव ह मोर लइक नइहे तेखर सेती मैं ह ओखर मोह माया म नई फंदाएव, तेखर सेती भगवान ह मोला साहज म मिलगे। जादा कोसिस करे बर नई परीस।‘
एक नाथजी के घरवाली घलौ एक नाथ संग छत्तीस के आंकड़ा राहाय, ओह भगवान के अभार के रूप म मानय कि ओखर घरवाली ह एकनाथ के साधना भक्ति म सहायता करय। अइसने नरसी मेहता ह बेटा के मिरतु म, संत तुकाराम ह बिपरित बिचार वाली गोसइन पायके सेती, अउ एकनाथ जी बिपरित समझ वाली घरवाली पा के घलौ परमात्मा ल धनियावाद दिस।
एक झन गौतमी के एकलौता बेटा मरगे, ओ दुःखी हो के भगवान बुद्ध मेरन अइस अउस दिकछा ले लिस। ओखर एके परवचन ले पांच सौ माई लोगन मन दिकछा ले के बौद्ध भिक्षुणी बनगे। पटाचारा के आगू के जिनगी के कहिनी अइसे रिहिस-ओ अपन दाई-ददा के बिचार के बिरूध अपन मन के बिहाव कर डारीस अउ परदेस म चल दिस। दु झन बेटा होय के बाद एक दिन अपने दाई-ददा संग भेंट करे बर अइस। संग म ओखर घरवाला अउ दुनो बेटा मन राहांय। रस्ता म घनघोर जंगल परीस। ओखर घरवाला ल सांप चाब देथे, ओ मर जथे। एक झन बेटा ल बघवा उठा के लेग जथे। अउ एक झन बेटा ह एक ठन झाड़-झंखाड़ के भुतका म खुसरीस ते उहां ले निकरबे नई करीस, कोजनि कहां अछिप होगे। ते पताच नई चलिस। पटाचारा का करय हतास होके दुःखी होगे। अपन दाई-ददा मेरन जाथे। ऊंहा गिस त लोगन बतइस कि जौन घर म राहात रीहीन तौन ह भसक के गिर गे उही म चपका के दाई-ददा दुनो मरगें। ओमन ल मरे तो बरसों बित गे राहाय। का करय ओ ह भगवान बुद्ध के सरन म अइस। तथागत ह ओला असार संसार के गियान कराथे। सासवत शांति अउ सुख-दुःख ले अलग जिनगी के नासवान होय के रहसिय ल समझा के ओखर मन म बइठे मोह-माया के जंजाल ल छोड़इस। तीन-तीन ठन दुःख के ज्वाला तपाय पटाचारा ल भगवान तथागत के बानी ले परम सांति अउ समाधान मिलिस।
संत रविदास ननपन ले कतको परेमी मन के दुख, भीसन गरीबी, बेमारी, गुलामी ल निडर होके हांसत-हांसत झेलिस। भगवान के करूना-किरपा अउ नियाव प्रियता के बिसय म संखा करना भक्त रविदास के बिचार म मुरूखपना अउ सरद्धा के सीमा रीहिस।
जौंन बिपत्ति परमात्म के अखंड सुरता कराथे। मोह ह सराप नहीं बरदान ये। अकिरपा नहीं अनुग्रह ये। नारद पंचरात्र में खुद परमात्मा के बचन हे- ‘देशत्यागामहान व्यार्धिविरोधी सक्षणम।
देसतियाग, महारेाग, ददा-भाई मन ले बिरोध, धन हानि अउ अपमान ए मोर किरपा के लक्छन ए।‘
गीता म घलो भगवान कहे हे ‘जेखर बर मैं अनुग्रह करावौं ओखर धन ल धीरे-धीरे हरन कर लेथंव। जब ओ ह कंगाल हो जथे तब ओखरे सगा-संबंधी मन ओखर संग ल छोड़ देथें। फेर जब ओखर धन कमाय के सबो कोसिस ह कांही मतलब के नई होवय। अउ ओखर से मन ह बैराग हो जथे। तब ओ ह मोर परेमी के भक्त के आसरा लेके ओखर संग सांठ-गांठ करे बर धरथे। उही बेखत मैं ओखर बर मया करथंव।‘
भगवान ह इंद्र के मानहानि करत बेखत कहिस-‘इंद्र तैं अपन सान अउ वैभव के निसा म बउरावत रेहे तेखर सेती तोर ऊपर अनुग्रह करके तोर जग ल भंग करेंव, एखर सेती कि तैं मोला सदा सुरता करस। जौन धन-दौलत अउ बड़ई के सेती घमंड म अंधरा हो जथे। तेन ह मोर सहिक सजा देवइया ल नई देखय। मैं जेखर ऊपर अनुग्रह करना चाहथंव, तेखर मान, बड़ई ल भ्रस्ट कर देथंव।‘
हमन परमात्मा के कैलानकारी बरजना ल समझन नई सकन, आदमी ह परमात्मा के मन ले अपन मन ल मिला देवय त सदा दिन बर सुखी रही सकत हें। महात्मा इशू ह कहिथे -‘परमेश्वर के इच्छा ले बढ़के अउ कोनों नइ हे। ओखर ले कमसल घलौ कखरो ले कम नई होवय। अउ दुसर कांहीच नई है। भगवान सबके मन के बात ल जानथे-समझथे, तभो ले अगियानता के सेती हमन अपन जरूरत ल ओला बतावन, त जौन जुआप हमर भलई करइया आय तेन ला पाय बर ओ अगमजानी ऊपर भरोसा करना चाही।‘
0 विट्ठलराम साहू 'निश्छल' मौहारी भाठा महासमुंद छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य - अब महूं हयसियत वाला होगेव

व्यंग्यकार - श्री विट्ठलराम साहू 'निश्छल'
जब कोनों कखरो घर बइठे-उठे बर जाथें त उंहा देसी-बिदेसी कांही जीनीस ल देखथें त मन म एक ठन बात उठथे कि अइसने जीनीस मोर घर काबर नइ हे ? का मोर हयसियत नइ हे? आज के जमाना म जेकर करा जतका बिलासता के समान रही, ओ ह ओतके अपन-आप ल सभ्य अउ हयसियत वाला समझथे। फेर मे ह ये सब बात के परवाह नइ करंव। मैं अपन आदर्श म अड़े हावव। मैं अपन जिनगी म अर्थशास्त्र के उपयोगिता हास नियम के कड़ाई ले पालन करे म बिसवास करथेव।
जब ले मोर गोसइन ह परोसी घर मोबाइल देख के आय हे तब ले ओ मोबाइल बर रोजना धर देय हे। कहिथे हगरा-पदरा मन मोबाइल धरे किंदरत रहिये। फेर कोन जनी हमर घर काबर मोबाइल नइ लानत हे ते ? कोन जुग म हावे ते? इहां लोगन कहां ले कहां निकरत हें। ये ह सव साल पाछू म जीयत हे। 
मेह गोसाइन के ताना ल सुन-सुन के पानी-पानी हो जथवं। जब-जब परोसी मन घर ले कांही नवा जीनीस देख के आथे, तब-तब मोला ओ जीनीस ल लान कहिके पदनीपाद पदोथे। ओ ह रंगीन टी.वी. कूलर वाशिंग मशीन, मिकसी, सीडी प्लेयर को जनी का-का जीनीस बर भूख हड़ताल कर डारे हे। जइसे सरकार ह अपन सरकारी नवकर मन ल भुलवार के हड़ताल ल बंद करवा देथे तइसे महूं ह ओला कांही कांही भुलवार-चुचचकार के ओकर लांघन हड़ताल ल बंद करवा देथंव।
ओकर जिद के आगू मोर आदर्स ह मढ़िया जथे। ओला मोर ले जादा मोबाइल संग परेम हो गे हे। मोबाइल के सेती मोला तियाग घलो सकत हे। ये बात के मोला पहिलीच ले भूस-भूस रिहीस। एक दिन जब मैं घर आयेंव त फिलमी स्टाईल म एक ठन चिट्ठी ल टेबुल उपर माड़हे देखेंव। ओला पड़हेंव। लिखाय राहय-मोला ऐती-ओती झन खोजबे, मैं अपन मईके जात हॅवं। जब तक घर म मोबाइल नइ आही मैं तोर घर नइ आववं। अब तोर हमर दार नइ चुरय। तलाक देय बर परही ते उहूं ल करे बर तियार हौंव। 
चिट्ठी ल बाच के घर के अंसी-संगसी सब डाहर ल खोज डारंवे नइच पायेंव। ओ तो सिरतोने अपन मईके डाहर रेंग देय रिहीस। मैं ठक्क रही गेंव। पलंग म अल्लर कस गदहा बइठ गेंव। कहूं महिला मन सहीक हमरो बिसेस थाना रहितीस त दहेज परतारना के जबरदस्त केस बनतीस। आज तक ले लड़काच वाला मन दहेज बर बहू ल परतारित करत आवत हें फेर मोर संग तो उल्टा होवत हे। ओ बिगन गतर के मोबाइल बर छोड़िक-छोड़ा के नवबद आगे। एक घव एक झन संगवारी ह मोर मोबाइल नंबर मांगिस। मैं केहेंव-मोर करा तो मोबाइल उ नइ हे रे भई। ओ ह सुन के मोर मुंह ल अइसे देखिस जने मने मैं आदमी नहीं भूत-परेत अव तइसे।
मैं केहेंव-सोंचत हंव महूं मोबाइल ले डारों कहिके। ओला बड़ अचम्हो होगे। जाने मने मैं दुनिया के आठवॉं अचरज आंव तइसे। या फेर मैं ओकर नजर म दुनिया के माने हुए लंबर एक के कंजूस दिखेंव। ओकर चेहरा के ओ भाव उड़ियागे जउन भाव ये रहसिय के उजागर होय के पहिली रिहीस। 
ओकर आगू मैं अपन-आप ल निच्चट हिनहर समझे लगेंव। एक दिन परोसी के हाल-चाल पुछे बर ओकर घर जा परेंव। ओ ह मोला मोबाइल मांगे बर आय होही कहिके पहिलीच ले काहत हे -'ये सारे मोबाईल म अड़बड़ पइसा खरचा होथे ओ दिन पइसा डरवाये हवं सव रूपिया तभो ले मोबाईल म पइसा नइ हे काहत हे। लगबे नई करत हे। तहीं बने हस मोबाइल नइ लेय हस ते। तोर करा कोनो फोन लगा दे कहि के नइ आवंय। तैं टेनसन ले बांचे हस। मैं परसान हो जथवं जेहू-तेहू मोबाइल लगा दे तो एक कनी कही के आ जथें।'
मैं माथ ल नवावत थोक मुस्किया के केहेंव - मैं ह मोबाइल लगाय बर नइ आयें हवं रे भाई, सुने रेहेंव तुंहर घर के भउजी के तबियत खराब हे ते चल हाल-चाल पुछ लेथंव कहि के आ परेंव। परोसी मन ल सुख-दुख के सोर खबर लेते रहना चाही।
परोसी अपन हयसियत बघारत किथे-बड़ काम के घलो हे गा... मोबाईल ह, आज-काल ऐकर बिगन काम घलो नी बनय। मोर मेरन तो मंतरी, विधायक, बड़े-छोटे साहेग बाबू मन के मोबाइल आते रिथें, वाहा दिल्ली, कलकत्ता, बंबई तक ले फोन आथे। मंत्रालय ले तो दिन भर, मैं असकटिया घलो जथव। तोर करा तो अइसन कोनों बुताच नइ हे, का फायदा अइसन रोग पोसे ले ? पइसा अलग खरचा होथे।
मैं परोसी के वियंग बानी ल समझत रेहेंव, अपन आप ल पहुंचवाला साबित करना चाहत रिहीस। ओ मोर स्वाभिमान ल ठेस मारत रिहीस। मोला चिल्हर समझ लीस। एक तो मैं अपन गोसइन के सेती परसान रेहेंव। याहा उमर म भला कोन जोरू-मरद अलग रेहे सकही।
अइसन स्थिति म मंतरी विधायक ले जादा मोर गोसाइन ल महत्व देय ल परही। मैं तुरते एक ठन मोबाईल बिसा डारेंव, अउ ओला मोबाइल करेंव-हलो... ओ ह मोबाईल म घलो मोर मारवा ल ओरख डारिस बड़ मया करत अपन कोइली कस मीठ गोठ म गोठियईस या... मोबाईल लान डारेव का जी...? हव तै कब आवत हस ? ऐदे लहुटती पछिन्दर मैं तुरते आवत हवं। ओकर मीठ बोली ह  मोला करेला ले जादा करू लागत रिहीस। फेर का करबे गोसाइन ल तो खुस राखेच ल परथे। जउन मन अपन गोसाईन ल नाखुस राखथें तेन मन हमेसा दुख म रथें।
घर आ के मोबाइल ल बड़ पियार छलकावत अपन मुंह म टेकइस अपन सखी सहेली मन संग घंटा भर ले गोठियाईस का साग का भात ल ले के सास-ससुर, देरान-जेठान, ननद-भऊजी, गाहना गुठा जम्मो गोंठ ल कर डारिस, मोबाईल म घलो चारी चुगरी के गोठ हो गे। जादा करके अइसे परोसिन मन संग गोठियाईस जऊन मन ओला मोबाईल बर चिड़हाय राहांय। चाहाक-चाहाक के घंटा भर ले।
ये डाहार मोर हिरदे के धुकधुकी बाढ़त राहय, काबर कि मोबाईल म पइसा उरकत राहय। फेर का करबे गोसाइन के सुख के आगू पइसा उरकई ह महत्व नइ राखय। मैं ओकर खुस होवई ल देखके अपन आप ल धन्य मानेव आज मैं अनभो करत रेहेंव कि दूरसंचार क्रांति ह मोला ऐक्कीसवीं सदी म लान दिस। ऐकर श्रेय मैं अपन गोसाइन ल देथव अतक दिन ले मैं आदिम जुग म रेहेंव। जबले मैं मोबाइल लाये हवं तब ले गोसाइन ह मोला बड़ मया करत हे। हम दुनों झन बड़ खुस हावन। अब महूं अपन आप ल हयसियत वाला महसुस करत हवं।
मोरो एक झन संगवारी ह मोला मोबाइल लंबर पुछें रिहीस तऊनों ल लंबर देंव। काबर कि ओला बताना रिहीस कि अब मोरो करा मोबाइल आगे। महूं हयसियत वाला हो गेंव। अब तो हमन मोबाइल ल अइसे पोटारे रथन जइसे अंगरेजियत मन कुकुर ल पोटारे रथें।
मौहारी भाठा महासमुंद छत्तीसगढ़

मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य- वाह रे गोंदली! तोर महिमा हे अपरमपार

व्यंग्यकार- श्री विट्ठलराम साहू 'निश्छल'
आज काल खोर-गली इसकूल दफ्तर बजार घर सबो डाहार गोंदलीच के गोठ चलत हे। जने-मने गोंदली ह कहीं पुरखा तरे के जीनीस आय तइसे। तहइा के जमाना म गोंदली ल कुकुर नई सूंघत रिहिसे। आज आदमी ल गोंदली नोहर हो गेय हे। गोंदली के सेती हमर परोसी घर में रोज झगरा मातथे। जब परोसी जेंय बर बइठथे त ओखर संघरा मे गोंदली के सलाद अवस करके रहिथे। काबर नई खाहीं। बपरा ल भगवान ह बने रोजे दु-चार पइसा देवा देथे दफ्तर म। गोंदली ल हसियते वाला मन खा सकथें। हमर सहीक मन तो सपना म घलौ नई सपना सकन। गोंदली ह बिगन हैसियत वाला मन ल रोवावत हे। होटल वाला मन पीआजी भजिया म लाल भाजी नहीं ते बंधी भाजी डारत हें। 
आजकल-गोंदली खाना सान के बात समझे जाथे। ऊंखर गिनती बड़े अदमी म होथे। अतक मांहगी के गोंदली ल भला छोटे अदमी ह कइसे खावन सकही ? हमर बबा पाहरो म बइठइया मन घलो एकक ओली धर के लेंगय। दिनोंदिन मांहगाई ह बेटी मन सहीक बाढ़त हे। तेखरे सेती मोर गोसईन ह साग मे अब गोंदली के बदला अऊ कांही कुछु के फोरन डारथे। फेर का करबे परोसी मन के सेती एकात पाव राखेच ल परथे। रोज क अऊ कांही जीनीस सहीक गोंदली ल घलो मांगथे। उन मन का जानही कि गोंदली आजकाल का भाव मिलत हे तेन ल।
अपन आन-बान-सान के रक्छा बर गोंदली राखेच ल परथे। मोर गोसईन के संगवारी बइठे बर आथें त ओ ह गोंदलीच के गोठ करथे। कहिथे-बिगर गोंदली के तो साग ह मीठाबे नई करय। चहे गोंदली सौ रूपिया हो जाय हमर घर माई-पिल्ला साग के अलाद गोंदली मांगथे। मांस-मछरी के दिन तो आधा किलो, तीन पाव तो लागबेच करथे। ओ ह गोंदली खवई के बखान करके अपन आप ल बड़े आदमी होय के माहसूस करावत रीहीस। मोर गोसईन ल ओखर बड़ई मरई ह सुहावत नई रीहीस। ओ मन-मन म गुसियावत रिहिस। जइसे गांव वाला मन सिरपंच के गोठ सुनके मन म गारी देंथे तइसे।
मोर गोसईन ल ओखर गोठ ल सुन के अपन हैसियत के गियान होगे। तभो ले ओखर आगू म अपन सान ल बचाय म पास होगे। अऊ कहिस-हमूमन आघू अब्बड़ खावन गोंदली। ओखर संगवारी ह टप्प ले बीचे म कहिथे- अब गोंदली मांहगी होगे हे तेखरे सेती खाय ल छोंड़ देव ? ना-ही गोंदली ह तो ये दे अभी-अभी मांहगिआईस हाबे, हमन जबले तीरीथ धाम कर के आय हन, तब ले तियागे हन, उही कोती चघा के आगेंन। कहूं-कहूं मन किहिस-‘‘जौंन तीरीथ-धाम करथें तौन मन ल कांही कुछु के तियाग करना चाही कहिथंे। अतका गोठल सुन के परोसिन के मुंह उतरगे। मैं गोसईन के हुसियारी ल मान गेंव, का जोरदार परहार करीस, ओखर बोलती बंद होगे।‘‘
फेर मैं फोकटे के फोकटे अपन सान बघरई ल भावंव नहीं। आलू-गोंदली के दुकान म पहिली बेर मैं अपन हैसियत ल जानेंव। महंगाई ह तो लोगन के परवार के बजट ल बिगाड़ देय हे मैं तो खरचा करे म हुसियार हौंव। मैं कहिथंव-मैं कोनो देस के सरकार थोरहे हांव तेन म सरलग घाटा के बजट म जिनगी ल चलावत राहांव। 
मैं घर में बइठे-बइठे परवारिक बजट उपर विचार करत रेहेंव ततकेबेरा एक झन संगवारी अईस। 
मोला संसो म परे देखके कहिथे-तें कबीर बरोबर काबर उदासी हावस, का तहूं ल ये माया ठगनी ह ठगे हे ? मैं केहेंव का बतावंव संगी ये तरहा गोंदली के सेती घर ते घर, संगवारी, दफ्तर सब मेंरन नमूसी झेले ल परत हे। गोंदली ह घर के बजट ल बिगाड़ देय हे। गोंदली के सेती समाज म मोर नाक कटाय सहीक हो गेय हे। अऊ ते अऊ ये आलू गोंदली दुकान वाला मनके नजर म मैं हीनहर हो गेय हंव। छोंड़ मोरे बात नहीं, में तो जम्मों सभिय समाज के सोंचथंव। आज कोनो ल येखर संसो करे के समय नई हे।
मोर बक्बक् लओ ह नई झेल सकीस अऊ कहिस- तैं अदमी आस धुन कोनों हिन्दी साहित्य के आलोचक, जौंन ह अपने विचार ल दूसरा मन ल मनवाए ल देखथें। इंहा सब झन अपने सुआरत ल देखईया हें। बेपारी मुनाफा कमा के अपन तिजोरी भरत हें, अधिकारी घूस खा के अपन बैंक बढ़ावत हें, नेता मन के करनी ल तो बताए के जरूरत नई हे, जगजाहिर हे। ओ मन आज ले जौंन करीन ओ कोनों नेक काम ले कमती नई हे। इहां तक गाय गरू के चारा तक नई बांचिस। अऊ तैं देस के संसो म बूड़ हस। ‘जब जनता अऊ सरकार ल येखर संसो नई हे त कईसे कर डारबे ? गोंदली खयेच ल छोंड़ देय। ये जुग म तैं-मैं जीयत हन सुनइया के अंकाल परे हे। ऊंखर जघा अब केऊ किसम के देखईया मन आगें। जइसे सिनिमा राहाय आज सरकार मुक्का देखइया हो गये हे। समाज म जौन भी होवत हे, खराब ले खराब घटना तीनों ल ओ ह अंधरा बन के कलेचुप निहारत रहिथे।
गोंदली के जघा अऊ कोनों जिनिस नई लेय सकय तेखर सेती गोंदली इतरावत हे। वाह रे, गोंदली तोर महिमा अपरम्पार हे।
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मौहारी भाठा महासमुंद छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य- गेस सलेंडर लानव-पति नंबर वन कहावव

व्यंग्यकार- श्री विट्ठलराम साहू 'निश्छल'
दूरदरसन अऊ अकासवानी म रोज दिन संझा-बिहना बिगियापन म किथे-‘नसबंदी करवा के नम्बर वन पति बनव किके। कतको झन मन आज ले गुनते रहिगे। में मने-मन खुस होथंव। काबर कि में तो नसबंदी करवा के कब ले ‘नम्बर वन पति‘ बन गेए हॉव। जब नम्बर वन पति वाला बिगियापन चलत रिथे त मोर घरवाली ह मोला देख-देख के मुचमुचावत रिथे। ओकर मुचमुचई मोला बने लागथे। सान ले मोर छाती फुग्गा कस फुल जथे। 
में अपन मेछा ल अंइठे लगथव।‘ में एक दिन काम ले आ के गोड़ हात धो के सोफा म बइठके पोछत-पोछत गोसईन ल केहेंव -ले चाहा ल लान बड़ थकासी लागत हे। रेडिया ल चालू करेंव त फेर उही पति नम्बर वन बनव किके बिगियापन देवत राहाय। मैं घरवाली ल सुना के केहेंव-‘अरें मोला तो नम्बर वन पति बने दसन बछर होगे, तें तो नंबर वन पति बने बर अभीन काहात हस।‘ गोसईन ल फुरसुतहा बइठे देख के फेर केहेव-अरे तो नम्बर वन पति ल अभी तक ले चाहा-चुही नई पोरसत हस, कइसे तोर मनढेरहा कस लागत हे? आन दिन तो बने मुचमुचावत राहास आज का होगे हे तोला? चूलहा-चौंकी घलौ जुड़हा दिखत हे। ओ ह आंखी ल छटकावत कहिथे-‘बड़ा लोखन के नम्बर वन पति बनथस भला गेस ल भरवा के लान देबे त जानहू तोला नम्बर वन पति अस घुन का पति अस ते।‘  मैं अचरित करत केहेंव-‘अरें कइसे गेस उरकगे का ओ? किथे-गेस रहितीस त चाहा-पानी, भात, साग ल रांध के नी मढ़ा देतेंव।‘ मैं केहेंव - दुनो टंकी उरकगे? ओ किथे-एक ठन ह तो महिना भर होगे उरके। दुसर ह आजे उरकीस हे । तोला तो कब के काहात हौंव-गेस ल भरवा के लान दे न लान दे, फेर तोला फुरसुत काहां हे? ले अब कइसे रांधहूं तेन ल बता ? गेस उरके सुनेंव त मोर नम्बर वन पति होय के सान ह जुड़ागे। जब पहिली टंकी उरकीस त तुरते गेस दुकान म जा के नंबर लगवाय रेहेंव। गेस वाला केहे रीहीस-एक हफ्ता म गेस आही, आ के लेग जबे किके। ओ हफ्ता बुलकगे नईजा पायेंव। दुसर हफ्ता गेंव, त किथे-वा, तोला तो एक हफ्ता के बाद आबे केहे रेहेव, तें तो आबे नी करेय, दु टरक आय रीहीस उरकगे। अब तो पनदरा दिन नई आवय। एकट्ठा ओ महिना म आबे त पाबे। मे केहेंव-अरे यार बड़ गड़बड़ होगे, कहूं उहू टंकी उरक जही त कइसे कर हूं?  गेस वाला किथे-ले न आबे देखबो। में ओखर आसरा देवई ल सुन के घर आगेंव । ये बात ल गेए महिना बीतगे। ये दे उदुपले आजे गोसईन बतईस गेस उरक गे कहिके। मोर तो हऊस उड़ियागे दिन घलौ बुड़गे, कांहा जांवव काखर सो मांगव बड़ अलकरहा होगे। गोसईन ल कहिंथव-जा ना अरोस-परोस ले अमीन भर बर मांग के ले लान भरवा के लानबो तहां लहुटा देबो, तहू तो ओ मन ल बेरा-कुबेरा देवत रहिथस। बिपत म काम आना चाही परोसी मन के। गोसईन ह आंखी ल ततेरत कहिथे-अभी रात कीन काखर घर जाहू काखर करा मांग हूं, अऊ कोन दिही? गेस बर कतका मारा-मारी होवत हे तेन ल तैंका जानबे? लोगन मन रात-दिन नम्बर लगाय बर खवई-पिअई ल तियाग के गेस दुकान म अड़े हे बिचारा मन। मैं केहेंव-अरे, तैं जौन मन ल अड़धन म ऊंखर काम चलाये हस तौनो मन नई देही ओ? नई देवयं, कोनो नई देवयं, गोसईन ह खिसियाहा बानी म कहिस। मैं सोचेंव डौकी जात ल नई दे ही, राहा मैं जा के मांग देखथों कहूं मिल जाय त, मिल जाय कहिके दु-चार घर में गेंव। सबो घर अपन-अपन गेस के रोना ल रो दिन। कोनो कीहीन-अरे, हमरो घर उरक गे रीहीस गेस ह गुड्डू के बाबू ह बिलेक म लाने हौ काहत रीहीन। एक झन परोसी कहिथे-यार, तहू अलकरहा हस जी घर पहुंच सेवा वाला मन रोज गली-गली किंदर-किंदर के देथे। दस-बीस उपराहा दे देवे तहां दे देथे। मैं तो दुदी ठन टंकी लेय हावव। मैं परोसी के गोठ ल सुन के अचरित ख गेंव। मैं का जानव गेस वाला मन के गोरख धंधा ल, भल ल भल जानेंव। तभे हाटल वाला अऊ मोटर वाला मन करा आठ ठन-दस ठन टाकी रेहे रथे।
परोसी मन मोला अइसे नजर ले देखिन जने-मने मैं कोनो अपराध कर के आए हावव तइसे। ऊंखर देखई म रहसिय रीहीस। ओ मन सोचत रहीन हो ही ये बड़ कंजूस आय उपराहा खरचा करे के डर म एखर-घर-ओखर घर मांगत हे, भुगतन दे। अरे। परोसी मन मोला नई जानय। महू दुनिया संग रेगे ल जानथव ‘मरता क्या न करता‘ कहिथे, मैं दस बीस का, सौ अऊ पचास देय बर तियार हावव फेर अइसन अपराध कब तक होवत रही? अऊ कब तक ले साहन करबो? मैं तभो ले जौन मन सौ पचास उपराहा ले, के देथे तिखरो-मन मेर जा के अपन दुख ल गोहरायेवं। कोनो नई मोर मदत करीन। 
मैं रोज बिहनिया गेस के टंकी ल सायकल म चपक के गेस दुकान जाथंव। नई हे कहिथे त फेर आ जाथव। देखइया मन घलौ काहात होही-कतक गेस डोहारथे रोज दू बेर तीन-बेर लानथे। गेस बिलेक करे के धंधा करत होही अऊ देखबे ते मोला इंहा भात के बदला रोज गारी खाय बर मिलथे।  मोर गोसईन बिचारी मोला आवत देखथे त धरा पसरा कपाट ल हरथे अऊ खुस होवत पूछथे-आज मिलीस गेस? मैं मुंह ल ओथार के कहिथव-नई मिलीस रे भगवान, का बतावव बड़ आफत हे सारे ह। घरवाली सुन के उदास हो जथे। फेर गुंगवावत चूलहा मेर आ के लाम सांस लेवत पोंगरी म फूंके लगथे। बरसात म चूलहा के लकड़ी ह बरे घलौ नहीं । पानी पिए लकड़ी गुंगवाथे। आंखी-नाक दूनो ओरवाती सहीक चुचवाथे। का करय लुगरा के अंचरा म रगर के पोंछत गेसवाला मन ल फुहरे-फुहरे बखनथे। रोगहा-अजरहा मन गेस ल बिलेक कर देथे , ये लोग ह चुलहा म आंखी फोरथे। इंखरेमन के राज आ गेए हे। उनला कोना कहइया नई हे। थाना-कछेरी, साहेब-मंतरी सब तो भस्टाचार म बुड़े हे। जनता ह काखर मेरन अपन दुख ल रोवय। गरीब के देखइया कोन हे? ओट ल मांगत खानी हात-पांव जोरथें-देखव दाई -ददा हो मोला भुला हू झन, मैं तुंहर सेवा ल पांच बछर ले करहूं, अइसे करहू ओइसे करहू कहि के मीठ-मीठ गोठियाही, अऊ जीत के राज-पाठ म बइठीन तहां पुछय नहीं, ऊंखर पुदगा जाम जथे। हीरक के नई देख्यं। रो-धोके भत-साग ल रांध के मोला पोरसीस। मैं जें-खा के जलदी सुतेव, मुंदराहा ले फेर गेस दुकान म लयेन लगाना हे कहिके। संसो के मारे नींद घलौ नई परीस। रात कीन दु बेर ले दुआर उठेंव फेर बेरा ह पंग-पंगायेच नई राहाय। तभो ले मुंह-कान ल धो के गेस के टंकी ल सायकल म चपक के चल देंव । ओतका बेरा रात ह तीन बजे राहाय। ऊंहा जा के देखथव ते गेस दुकान करा मेला सहीक भीड़ ह रवैमो खैमों करत राहाय। फरलांग भर ले चांटी कस रेम लगे राहाय। अवइया मन आते राहाय। लैन ह बाढ़ते राहाय। दिन बुड़त मोर पारी अईस। त गेस वाला ह कहिथे-गेस तो उरक गे, जा, आन दिन आबे। मैं केहेव-कस जी मोरे आगू म अभी कतको झन ल दु-दु चर-चर ठन टंकी देये हस अऊ मैं एक ठन वाला बर तै उरक गे कहिथस, रात के तीन बजे के ठाढ़े हौं, ये दे दिन घलौ बुड़ती आगे। गेस वाला मोर डाहार लाल-लाल आंखी देखावत कहिथे-ओ कब का नम्बर लगवाया थ, तुमको पता है? दो माह पहिले का है, तुम तो आज ही लगाये हो। जाओ कल आना, बचेगा तो मिलेगा। का करव जुच्छा हात फेर घर लहुटेंव। ‘काहां गेय रेहे कहूं नहीं, का लाने कुछुं नहीं।
घर आवत-आवत गोड़-हात सीनसीनागे, सोचे लगेंव-मैं अब‘पति नम्बर वन‘ होय के पदवी के लाज ल नई राख सकेंव। गोसईन के नजर म मैं नलायेक पति बन गेंव। धीक्कार हे अइसन पति ल जौंन अतका दुख भोगे के बाद घलौ एक ठन गेस के टांकी ल नई लानन सकेंव। टीबी, रेडिया वाला मन ल ‘ पति नम्बर वन‘ होय के परिभाषा ल ‘नसबंदी‘ संग जोरे के बदला गेस संग जोर लेना चाही। 
 ‘गेस सलेंडर लाओ-पति नम्बर वन कहलाओ।‘
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मौहारी भाठा महासमुंद छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य- अथ सिरि, मोबाइल कथा

व्यंग्यकार- श्री विट्ठलराम साहू 'निश्छल' 
काम ले थके-मांदे आयेंव । झम्म ले आगू म आ गे गोसईन ह बाढ़ छेके बरोबर दुआरी म ठाड़ होग। मैं केहेव-घूच न ओ, तैं कइसे करथस ?  ओ कांही-हुकीस न भूकीस। मैं थोक चिढ़चिढ़ावत केहेंव-घूच न, का होगे हे रे येला ? गोड़-हात ल तो धोवन दे, भूख् के बेरा। ओ कहिथे-तैं काम म जावत-जावत केहे रेहे न, आज लानहू मोबाइल कहिके, लाने ? रोज दिन तैं मोला दुद कस लईका भुलवार देथस, आज लानहूं, काल लानहू कहिके। पहिली देखा लेले कइसना वाला मोबाइल लाने हस तेन ल।
मैं केहेंव-अरे, दम तो धर ओ लछमी, कतका तोला मोबाइल के सउक हे ते ? सुरतावन तो दे, थके मांदे आये हंव काम ले।  ओ ह दुआरी ले उठ के अंगना मं आंट उपर गोड़ लमाके बईठगे, मुंह ल कुहरा कस फूलों के । अऊ मोला सुना-सुना के काहात हे-दाई-ददा, पूज-भतिज ल तियाग के में इहां परदेस म बिरोग लेय हंव।  ककरो कांही सोर-खबर नी मिलय। सब झन मोबाइल म बने हांसत-गोठियावत रिथे। अऊ हम ह कांही जंगल-झाड़ी म बैराग ले के बइठे हन, तइसे लागथे। मोर मईके म जम्मो झन करा मोबाइल हावय। जब जाथंव, तब भऊजी मन किथें-तहुं ह भांचा के पापा ला नी कहिते ।  मोबाइल के बिगन ककरो कामें नई चलय।  कांही होथे त तुमन ल खबरे नी देवन सकन । फोन ह तुंहर डेड हो गेय हे का ?  अतका लगाथन लगबे नई करय। आज-काल तो मोबाइल ह गांव-गांव म होगेय हे। ओ मन ल का अपन फदिहत ल बता हूं ?  कि हमर घर फोन तको नई हे तेन ल। परोसी घर के फोन लंबर ल बताये रेहेंव। उहू मन कतक ल साहाय, रात-दिन के फोन अवई म असकटिया जथे। घंटी बाजत रिथे, तभो नी उठावंय। बेरा बखत म उठई लेथे, त जानथें कि रईपुरहीन मे मईके के फोन आय हे किके। त रांग नंबर किके फोन ल मड़ा देथें।
मैं बारी डाहार, ले हांत-गोड़ ल धो के पोछत अंगना म दसे खोर्रा घटिया म बइठेंव त गोसईन ह अंते डाहार अपन मुंह ल टार के फेर बड़बड़ाये लगिस।  मोर तो ये घर मं एक कौड़ी के कदर नई हे। बुता करईया बनिहार-भुथियार के हे फेर मोर नई है। कोन हे मोर सुनइया ? कुकुर बरोबर भूंकत राहाव।
में सुनत भर ले सुनेंव, फेर ओला समझावत केहेंव-देख ओ, हमन कमती आमदनी वाला अन, दु-तीन हजार रूपिया ल फालतु के नानकीन डबिया बर काबर फसाबो ? फेर हमर का अतका अरजेन्टी हे तेन म। कौन मार के हमर बैपार चलत हे, तेखर सेती मोबाइल बर धरना धरे हस ? मोर समझम नई आवय भई। अरे तोला गजब सउक हे गोठियाय के ते, पांच रूपिया म एसटीडी म जा के गोठिया ले कर। गोठियायेच बर दु-तीन हजार खरचा करई ह मोला तो बेवकुफी लागत हे। अऊ फेर ओमा हपता-पनदरही म फेर सौव दु सौव रूपिया भरवा। फोकट खरचा आय नहीं, भला तहीं बता ?
गोसईन किथे-त सौव दु सौव ल नई खरच सकबे महिना म ? हमर ले कतको हिनहर हें तेन मन तो मोबाइल धरे-धरे कींदरत हें। में केहेंव-हिजगाच म तो हमन छत्तीसगढ़िया मन भोसावत हंन, दुसरा मन कांही करय, हमला का करे बर हे ? गोसईन किथे-परोसिन मन ताना मारथें-अई ? तुमन आज ले मोबाइल नई लेय हौव? हमर घर तो दुदी ठन हावय। एक ठन ह गुड्डी के पापा करा रिथे अऊ एक ठन ह मोर मेंर। लेवव भई तहूं मन। बिगन मोबाईल के तुमन ल कइसे बने लागथे ते ? 
हमन तो माई-पिल्ला बिगन मोबाइल के रेहे नई सकन। हमर गुड्डू ह दु बरीस के हे, तेउन ह अपन दादा सो-मोबाइल म गोठिया डारथे। भले चांऊर-दार बर पईसा नी रही ते झन राहाय, फेर मोबाइल म पइसा डरवाए बर उधार मांग के भरवाथन। तहीं बता न बहिनी, घेरी-बेरी मईके अऊ कहूंचो परवार मं, संगी-साथी म पईसा डार के मोटर गाड़ी म जा आ नी सकन। मोबाइल म सुख-दुख गोठिया ले, भेंट-पैलगी कर ले, पांच-दस रूपिया लागथे, जादा घलो नई लागय। आये ते नो हे सिरतोन ? कांही सुख-दुख के खबर हे, ते अऊ कांही हे, घर बइठे सबो खबर ह पता चल जथे। तोला कांही खबर देना हे, कांही पुछना हे, तें पुछ ले। तेखरे सेती बहिनी हमन भूखन मर जथन फेर मोबाइल ल भरवाथन।
मोर समझ म ठाक हे मोबाइल ह बड़ काम के हे, फेर येकर दुरूपयोग तो घलौ बहु होवत हे, माई लोगन मन रंधनी घर म खुसरे-खुसरे गोठियाय ल धर लेथे। अई.....ई.....खरोरहिन.... नमसते का साग राघत हस या ? मोबाईल म तक तोर साग ह माहमाहावत हे। त ओ डाहार ले जवाब आथे-मैं तो मुरई अऊ सुकसी रांधत हॉव दीदी, अऊ तैं हा ? अरे का बतावंव गुड्डू के पापा ह बिहने के गेय हे  आपिस, उहीं कोती ले साग-भाजी ल लानहूं केहे हे। देखत हॉव मुंह फारे। माई लोगन मन दुनियां भर के गोठ-महंगाई, इसकुल के मेडम मन के चरित्तर, राजनीति के डौकी नेता के चरित्तर, टीबी सिरियल, बाबा रामदेव के योग, एक दुसर के चारी-चुगरी, रमायेन मंडली, त नावां साडही-बेलाउज के मेंचिंग ह फलानी ल फबथे ते नहीं, पारा-मोहल्ला के कौन टूरी के काखर संग कनेकसन हे, कांहा मिलभेंट होथे, अईसने आनी-बानी के गोठ ह जब ले मोबाइल आय हे, तब ले ऊंखर गोठियाय के दायरा ह बाढ़ गेय हे। येती बर गेस म कांही माड़े हे तउन जर के कोईला होवत हे, उनला पता नई हे।
सट्टा वाला मन मोबाइल म नंबर लिखवा लेवत हें। इसकूल-कालेज के टूरा-टूरी मन के ठऊंका बनऊकी बन गेय हे। पहिली संदेसिया राखेबर परय, परेम पतर भेजे बर अब तो मोबाइल ह ऊंखर परान पियारा हो गेय हे। मोबाइल म अपन पोरोगराम सेट कर के अपन योजना म सफलता पा जात हे। टूरी-टूरा मन के उढ़रिया भागे मं ये मोबाइल के बहुत बडा योगदान हे। 
चोर-लुटेरा मन चोरी कर के भाग जथें, ओ मन मोबाइल म पता कर लेथे कि पुलुस कोनकोती बर खोजत हे तेन ल।  पुलुस कहूं उत्ती कोती गेय हें, त अपन मन बुड़ती ड़ाहर भागथे। बिलेक मारकीट वाला मन तुरते पता कर लेथें कि कोन माल के का भाव हे, जमीन दलाल, कमिसनखोर, नवकरी लगवाय के धंधा अभी जोर-सोर ले चलत हे। मोबाइल म लेन-देन के भाव-ताव हो जथे।
आज-काल महूं बिचार करत हॅव, मोरो कवि-लेखक साहित्यकार भाई मन खिसियाथे- का निपोर अतेक बड़ साहित्यकार होके एक ठन मोबाइल नई ले सकत हस, कांही सोर-खबर, सम्मेलन, परकाशन के संबंध म तोर ले समपर्क नई हो सकय।  एक ठन मोबाइल बिसा, आज के जमाना म ये बहुत जरूरी हे। आज के दुनिया तेजी से भागत हे अऊ हमला दुनिया संग भागे ल परही। मैं लेय बर तो ले डारहू, फेर सोंचथंव मैं अकेल्ला कमईया अऊ छे-छे झन खवइया, काला कइसे कर डारहू ? चेलिक-चेलिक बेटा मन हे। ओ मन ल दुनियां ल देख के कांही के सउक नई लागय तइसे लागथे। गोसइन अऊ संगी साथी के ठोलई म मोबाइल ल लानी लेहूं, त घर भर के मन गोठिया-गोठिया के एके हपता म पइसा ल उरका डारहीं। ओ मन ल तो कांही नी करना हे, मुही ल भरवाये ल परहीं।
ओईसने कहि-कहि के फटफटी ल लेवा दिन। अपने मन चलाही अऊ पिटरोल उरकीस तांहा कुरिया म ओईला देथें। आज काल पिटरोल के भाव ही बेटी कस बाढहत हे। उदुपले कहूं जायबर रही त गाड़ी म एक बूंद तेल नहीं, झकमार के तहीं भरवा। चलाबे तब तो तेल भरावये ल परही, पानी म थोरहे चलही ?  गोसईन ह फेर चेंधे लगिस, अपन भाखा ल कड़ा करत कहिथे-तैं लेबे धुन नहीं मोबाइल एक बात बता। सोज-सोज बता-लानहू तेन ल लानहू कहि, नी लानस ते नी लानव कहि।  में ओकर धमकी-चमकी ल सुन के डर्रा गेंव। हे भगवान कहूं आन के तान झन हो जाये, ये सारे सरहा जीनिस बर कांही हो जही तेहू मुस्कील हे। ये तो एक ठन हाना-जूरे हे न, नहाय गांड़ा अऊ सम्हराय घोड़ा बार नी बांधय। 
में दुनों हात ल जोर के अपन मांथ म लेगत केहेंव-में अब्भीच जा के लानत हॉव लछमी तें नराज झन हो। ले चल जेवन निकार। लोटा म पानी निकारत फेर धमकी दिस-आज कहूं नी लाने ते देख लेबे, कइसे होही तेन ल। ओकर धमकी उपर हांसी आगे खलखला के हांस डारेंव अऊ मया घलौ पलपलागे।
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मौहारी भाठा महासमुंद छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य : पत्नी पीड़ित संघ

व्यंग्यकार श्री विट्ठलराम साहू ‘निश्छल’ रायपुर छत्तीसगढ़  पत्नी पीड़ित संघ के अध्यक्ष ह जब सुनिस कि सरकार हा 2011 बरस ल नारी ससक्तिकरण बर...